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वार्त्र॑हत्याय॒ शव॑से पृतना॒षाह्या॑य च। इन्द्र॒ त्वाव॑र्तयामसि ॥६८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वार्त्र॑हत्या॒येति॒ वार्त्र॑ऽहत्याय। शव॑से। पृ॒त॒ना॒षाह्या॑य। पृ॒त॒ना॒सह्या॒येति॑ पृतना॒ऽसह्या॑य। च॒। इन्द्र॑। त्वा॒। आ। व॒र्त॒या॒म॒सि॒ ॥६८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:68


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सेनाध्यक्ष कैसे विजयी हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) परमैश्वर्य्युक्त सेनापते ! जैसे हम लोग (वार्त्रहत्याय) विरुद्ध भाव से वर्त्तमान शत्रु के मारने में जो कुशल (शवसे) उत्तम बल (पृतनाषाह्याय) जिससे शत्रुसेना का बल सहन किया जाय उससे (च) और अन्य योग्य साधनों से युक्त (त्वा) तुझको (आ, वर्तयामासि) चारों ओर से यथायोग्य वर्त्ताया करें, वैसे तू यथायोग्य वर्त्ता कर ॥६८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो विद्वान्, जैसे सूर्य मेघ को वैसे, शत्रुओं के मारने को शूरवीरों की सेना का सत्कार करता है, वह सदा विजयी होता है ॥६८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

सेनाध्यक्षः कथं विजयी भवेदित्याह ॥

अन्वय:

(वार्त्रहत्याय) विरुद्धभावेन वर्त्ततेऽसौ वृत्रः वृत्र एव वार्त्रः। वार्त्रस्य वर्त्तमानस्य शत्रोर्हत्या हननं तत्र साधुस्तस्मै (शवसे) बलाय (पृतनाषाह्याय) ये मनुष्याः पृतनाः सहन्ते ते पृतनासाहस्तेषु साधवे। (च) (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययुक्त सेनेश (त्वा) त्वाम् (आ) समन्तात् (वर्त्तयामसि) प्रवर्त्तयामः ॥६८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे इन्द्र ! यथा वयं वार्त्रहत्याय शवसे पृतनाषाह्याय तेनान्येन योग्यसाधनेन च त्वाऽऽवर्त्तयामसि तथा त्वं वर्त्तस्व ॥६८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो विद्वान् सूर्य्यो मेघमिव शत्रून् हन्तुं शूरवीरसेनां सत्करोति, स सततं विजयी भवति ॥६८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. सूर्य जसे मेघांचे हनन करतो तसे जो विद्वान (सेनापती) शत्रूंना मारण्यासाठी शूरवीर सेनेचा सत्कार करतो तो सदैव विजयी होतो.