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यद्द॒त्तं यत्प॑रा॒दानं॒ यत्पू॒र्त्तं याश्च॒ दक्षि॑णाः। तद॒ग्निर्वै॑श्वकर्म॒णः स्व॑र्दे॒वेषु॑ नो दधत् ॥६४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्। द॒त्तम्। यत्। प॒रा॒दान॒मिति॑ परा॒ऽदान॑म्। यत्। पू॒र्त्तम्। याः। च॒। दक्षि॑णाः। तत्। अ॒ग्निः। वै॒श्व॒क॒र्म॒ण इति॑ वैश्वऽकर्म॒णः। स्वः॑। दे॒वेषु॑। नः॒। द॒ध॒त् ॥६४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:64


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे गृहस्थ विद्वन् ! आपने (यत्) जो (दत्तम्) अच्छे धर्मात्माओं को दिया वा (यत्) जो (परादानम्) और से लिया वा (यत्) जो (पूर्त्तम्) पूर्ण सामग्री (याश्च) और जो कर्म के अनुसार (दक्षिणाः) दक्षिणा दी जाती है, (तत्) उस सब (स्वः) इन्द्रियों के सुख को (वैश्वकर्मणः) जिसके समग्र कर्म विद्यमान हैं, उस (अग्निः) अग्नि के समान गृहस्थ विद्वान् आप (देवेषु) दिव्य धर्मसम्बन्धी व्यवहारों में (नः) हम लोगों को (दधत्) स्थापन करें ॥६४ ॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष और जो स्त्री गृहाश्रम किया चाहें, वे विवाह से पूर्व प्रगल्भता अर्थात् अपने में बल, पराक्रम, परिपूर्णता आदि सामग्री कर ही के युवावस्था में स्वयंवरविधि के अनुकूल विवाह कर धर्म से दान-आदान, मान-सन्मान आदि व्यवहारों को करें ॥६४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यत्) (दत्तम्) सुपात्रेभ्यः समर्पितम् (यत्) (परादानम्) परेभ्य आदानम् (यत्) (पूर्त्तम्) पूर्णां सामग्रीम् (याः) (च) (दक्षिणाः) कर्मानुसारेण दानानि (तत्) (अग्निः) पावक इव गृहस्थो विद्वान् (वैश्वकर्मणः) विश्वानि समग्राणि कर्माणि यस्य स एव (स्वः) ऐन्द्रियं सुखम् (देवेषु) दिव्येषु धर्म्येषु व्यवहारेषु (नः) अस्मान् (दधत्) दधातु ॥६४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे गृहस्थ ! त्वया यद्दत्तं यत्परादानं यत्पूर्त्तं याश्च दक्षिणा दीयन्ते, तत्स्वश्च वैश्वकर्मणोऽग्निरिव भवान् देवेषु नो दधत् ॥६४ ॥
भावार्थभाषाः - ये याश्च गृहाश्रमं चिकीर्षेयुस्ते पुरुषास्ताः स्त्रियश्च विवाहात् प्राक् प्रागल्भ्यादिसामग्रीं कृत्वैव युवावस्थायां विवाहं कृत्वा धर्मेण दानादानमानादिव्यवहारं कुर्युः ॥६४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे पुरुष व ज्या स्रिया गृहस्थाश्रमात प्रवेश करू इच्छितात त्यांनी विवाहापूर्वीच प्रगल्भता अर्थात् बल, पराक्रम, परिपूर्णता इत्यादींनीयुक्त व्हावे. युवावस्थेमध्येच स्वयंवर पद्धतीनुसार विवाह करून धर्माने दान (देणे) आदान (घेणे) मान, सन्मान इत्यादी व्यवहार करावेत.