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येन॒ वह॑सि स॒हस्रं॒ येना॑ग्ने सर्ववेद॒सम्। तेने॒मं य॒ज्ञं नो॑ नय॒ स्व᳖र्दे॒वेषु॒ गन्त॑वे ॥६२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

येन॑। वह॑सि। स॒हस्र॑म्। येन॑। अ॒ग्ने॒। स॒र्व॒वे॒द॒समिति॑ सर्वऽवेद॒सम्। तेन॑। इ॒मम्। य॒ज्ञम्। नः॒। न॒य॒। स्वः᳖। दे॒वेषु॑। गन्त॑वे ॥६२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:62


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) पढ़ने वा पढ़ानेवाले पुरुष ! तू (येन) जिस पढ़ाने से (सहस्रम्) हजारों प्रकार के अतुल बोध को (सर्ववेदसम्) कि जिसमें सब वेद जाने जाते हैं, उसको (वहसि) प्राप्त होता और (येन) जिस पढ़ने से दूसरों को प्राप्त कराता है, (तेन) उससे (इमम्) इस (यज्ञम्) पढ़ने-पढ़ाने रूप यज्ञ को (नः) हम लोगों को (देवेषु) दिव्य गुण वा विद्वानों में (स्वर्गन्तवे) सुख के प्राप्त होने के लिये (नय) पहुँचा ॥६२ ॥
भावार्थभाषाः - जो धर्म के आचरण और निष्कपटता से विद्या देते और ग्रहण करते हैं, वे ही सुख के भागी होते हैं ॥६२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स एव विषयः प्रकाश्यते ॥

अन्वय:

(येन) अध्यापनेन (वहसि) प्राप्नोषि (सहस्रम्) असंख्यमतुलं बोधम् (येन) अध्ययनेन (अग्ने) अध्यापकाध्येतर्वा (सर्ववेदसम्) सर्वे वेदसो वेदा विज्ञायन्ते यस्मिँस्तम् (तेन) (इमम्) वक्ष्यमाणम् (यज्ञम्) अध्ययनाध्यापनाख्यम् (नः) अस्मान् (नय) प्राप्नुहि प्रापय वा (स्वः) सुखम् (देवेषु) दिव्येषु गुणेषु विद्वत्सु वा (गन्तवे) गन्तुं प्राप्तुम् ॥६२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! त्वं येन सहस्रं सर्ववेदसं वहसि प्राप्नोषि, येन च प्रापयसि, तेनेमं यज्ञं नो देवेषु स्वर्गन्तवे नय ॥६२ ॥
भावार्थभाषाः - ये धर्माचरणनिष्कपटत्वाभ्यां विद्यां प्रयच्छन्ति गृह्णन्ति च, त एव सुखभागिनो भवन्ति ॥६२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे धर्माचरणाने व निष्कपट वृत्तीने विद्या शिकतात व शिकवितात तेच सुखाचे भागीदार असतात.