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दि॒वो मू॒र्द्धासि॑ पृथि॒व्या नाभि॒रूर्ग॒पामोष॑धीनाम्। वि॒श्वायुः॒ शर्म॑ स॒प्रथा॒ नम॑स्प॒थे ॥५४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दि॒वः। मू॒र्द्धा। अ॒सि॒। पृ॒थि॒व्याः। नाभिः॑। ऊर्क्। अ॒पाम्। ओष॑धीनाम्। वि॒श्वायु॒रिति॑ वि॒श्वऽआ॑युः। शर्म॑। स॒प्रथा॒ इति॑ स॒ऽप्रथाः॑। नमः॑। प॒थे ॥५४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:54


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसा मनुष्य दीर्घजीवी होता है? इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! जो आप (दिवः) प्रकाश अर्थात् प्रताप के (मूर्द्धा) शिर के समान (पृथिव्याः) पृथिवी के (नाभिः) बन्धन के समान (अपाम्) जलों और (ओषधीनाम्) ओषधियों के (ऊर्क्) रस के समान (विश्वायुः) पूर्ण सौ वर्ष जीनेवाले और (सप्रथाः) कीर्तियुक्त (असि) हैं, सो आप (पथे) सन्मार्ग के लिये (नमः) अन्न (शर्म) शरण और सुख को प्राप्त होओ ॥५४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्य न्यायवान्, सहनशील, औषध का सेवन करने और आहार-विहार से यथायोग्य रहनेवाला, इन्द्रियों को वश में रखता है, वह सौ वर्ष की अवस्थावाला होता है ॥५४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

किं भूतो जनो दीर्घायुर्भवतीत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(दिवः) प्रकाशस्य (मूर्द्धा) शिर इव वर्त्तमानः (असि) (पृथिव्याः) (नाभिः) बन्धनमिव (ऊर्क्) रसः (अपाम्) जलानाम् (ओषधीनाम्) (विश्वायुः) पूर्णायुः (शर्म) शरणम् (सप्रथाः) प्रथसा प्रख्यया सह वर्त्तमानः (नमः) अन्नम् (पथे) मार्गाय ॥५४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यस्त्वं दिवो मूर्द्धा पृथिव्या नाभिरपामोषधीनामूर्गिव विश्वायुः सप्रथा असि, स त्वं पथे नमः शर्म च प्राप्नुहि ॥५४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यो मनुष्यो न्यायवान् क्षमावान् औषधसेवी युक्ताहारविहारो जितेन्द्रियो भवति, स शतायुर्जायते ॥५४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जो माणूस न्यायी, सहनशील, औषधांचे सेवन करणारा, यथायोग्य आहार-विहार करणारा, इंद्रियांना ताब्यात ठेवणारा असतो तो शंभर वर्षे जगतो.