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स्व॒र्ण घ॒र्मः स्वाहा॑ स्व᳕र्णार्कः स्वाहा॑ स्व᳕र्ण शु॒क्रः स्वाहा॒ स्व᳕र्ण ज्योतिः॒ स्वाहा॒ स्व᳕र्ण सूर्यः॒ स्वाहा॑ ॥५० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्वः॑। न। घ॒र्मः। स्वाहा॑। स्वः॑। न। अ॒र्कः। स्वाहा॑। स्वः॑। न। शु॒क्रः। स्वाहा॑। स्वः॑। न। ज्योतिः॑। स्वाहा॑। स्वः॒। न। सूर्यः॑। स्वाहा॑ ॥५० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:50


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे जन पदार्थों को शुद्ध करते हैं, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (स्वाहा) सत्य क्रिया से (स्वः) सुख के (न) समान (घर्मः) प्रताप (स्वाहा) सत्य क्रिया से (स्वः) सुख के (न) तुल्य (अर्कः) अग्नि (स्वाहा) सत्य क्रिया से (स्वः) सुख के (न) सदृश (शुक्रः) वायु (स्वाहा) सत्य क्रिया से (स्वः) सुख के (न) समान (ज्योतिः) बिजुली की चमक (स्वाहा) सत्य क्रिया से (स्वः) सुख के (न) समान (सूर्यः) सूर्य हो, वैसे तुम भी आचरण करो ॥५० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। यज्ञ के करनेवाले मनुष्य सुगन्धियुक्त आदि पदार्थों के होम से समस्त वायु आदि पदार्थों को शुद्ध कर सकते हैं, जिससे रोगक्षय होकर सब की बहुत आयुर्दा हो ॥५० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशा जनाः पदार्थान् शुन्धन्तीत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(स्वः) सुखम् (न) इव (घर्मः) तापः (स्वाहा) सत्यया क्रियया (स्वः) (न) इव (अर्कः) अग्निः (स्वाहा) (स्वः) (न) इव (शुक्रः) वायुः (स्वाहा) (स्वः) (न) इव (ज्योतिः) विद्युतो दीप्तिः (स्वाहा) (स्वः) (न) इव (सूर्यः) (स्वाहा) ॥५० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा स्वाहा स्वर्न घर्मः स्वाहा स्वर्नार्कः स्वाहा स्वर्न शुक्रः स्वाहा स्वर्न ज्योतिः स्वाहा स्वर्न सूर्यः स्यात्, तथा यूयमप्याचरत ॥५० ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यज्ञकारिणो मनुष्याः सुगन्धाद्रिद्रव्यहोमैः सर्वान् वाय्वादिपदार्थान् शुद्धान् कर्त्तुं शक्नुवन्ति, येन रोगराहित्येन सर्वेषां दीर्घायुः स्यात् ॥५० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. यज्ञ करणारे लोक सुगंधियुक्त पदार्थांची आहुती देऊन होम करतात व संपूर्ण वायू इत्यादी पदार्थ शुद्ध करू शकतात, त्यामुळे रोगांचा नाश होऊन सर्वजण दीर्घायू बनू शकतात.