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या वो॑ दे॒वाः सूर्ये॒ रुचो॒ गोष्वश्वे॑षु॒ या रुचः॑। इन्द्रा॑ग्नी॒ ताभिः॒ सर्वा॑भी॒ रुचं॑ नो धत्त बृहस्पते ॥४७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

याः। वः॒। दे॒वाः। सूर्य्ये॑। रुचः॑। गोषु॑। अश्वे॑षु। याः। रुचः॑। इन्द्रा॑ग्नी। ताभिः॑। सर्वा॑भिः। रुच॑म्। नः॒। ध॒त्त॒। बृ॒ह॒स्प॒ते॒ ॥४७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:47


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (बृहस्पते) बड़े-बड़े पदार्थों की पालना करनेहारे ईश्वर और (देवाः) विद्वान् मनुष्यो ! (याः) जो (वः) तुम सबों की (सूर्य्ये) चराचर में व्याप्त परमेश्वर में अर्थात् ईश्वर की अपने में और तुम विद्वानों की ईश्वर में (रुचः) प्रीति हैं वा (याः) जो इन (गोषु) किरण, इन्द्रिय और दुग्ध देनेवाली गौ और (अश्वेषु) अग्नि तथा घोड़ा आदि में (रुचः) प्रीति हैं वा जो इन में (इन्द्राग्नी) प्रसिद्ध बिजुली और आग वर्त्तमान हैं, वे भी (ताभिः) उन (सर्वाभिः) सब प्रीतियों से (नः) हम लोगों में (रुचम्) प्रीति को (धत्त) स्थापन करो ॥४७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जैसे परमेश्वर गौ आदि की रक्षा और पदार्थविद्या में सब मनुष्यों को प्रेरणा देता है, वैसे ही विद्वान् लोग भी आचरण किया करें ॥४७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(याः) (वः) युष्माकम् (देवाः) विद्वांसः (सूर्ये) चराचरात्मनि जगदीश्वरे (रुचः) प्रीतयः (गोषु) किरणेन्द्रियेषु दुग्धादिदात्रीषु वा (अश्वेषु) वह्नितुरङ्गादिषु (याः) (रुचः) प्रीतयः (इन्द्राग्नी) इन्द्रः प्रसिद्धो विद्युदग्निः पावकश्च (ताभिः) (सर्वाभिः) (रुचम्) प्रीतिम् (नः) अस्माकं मध्ये (धत्त) धरत (बृहस्पते) बृहतां पदार्थानां पते पालकेश्वर ॥४७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे बृहस्पतेः। देवा या वस्सूर्ये रुचो या गोष्वश्वेषु रुचः सन्ति, या वैतेष्विन्द्राग्नी वर्त्तेते, तौ च ताभिस्सर्वाभी रुग्भिर्नो रुचं धत्त ॥४७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। यथा परमेश्वरो गवादिपालने पदार्थविद्यायां च सर्वान् मनुष्यान् प्रेरयति, तथैव विद्वांसोऽप्याचरेयुः ॥४७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जसा परमेश्वर गाई, (किरणे, इंद्रिये) इत्यादींचे रक्षण करतो व सर्व माणसांना पदार्थ विद्या जाणून घेण्याची प्रेरणा देतो, तसेच विद्वान लोकांनी वागावे.