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प्र॒जाप॑तिर्वि॒श्वक॑र्मा॒ मनो॑ गन्ध॒र्वस्तस्य॑ऽऋ॒क्सा॒मान्य॑प्स॒रस॒ऽएष्ट॑यो॒ नाम॑। स न॑ऽइ॒दं ब्रह्म॑ क्ष॒त्रं पा॑तु॒ तस्मै॒ स्वाहा॒ वाट् ताभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥४३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र॒जाप॑ति॒रिति॒ प्र॒जाऽप॑तिः। वि॒श्वक॒र्मेति॑ वि॒श्वऽक॑र्म्मा। मनः॑। ग॒न्ध॒र्वः। तस्य॑। ऋ॒क्सा॒मानीत्यृ॑क्ऽसा॒मानि॑। अ॒प्स॒रसः॑। एष्ट॑य॒ इत्याऽइ॑ष्टयः। नाम॑। सः। नः॒। इ॒दम्। ब्रह्म॑। क्ष॒त्रम्। पा॒तु॒। तस्मै॑। स्वाहा॑। वाट्। ताभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥४३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:43


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य कैसे हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम जो (विश्वकर्मा) समस्त कामों का हेतु और (प्रजापतिः) जो प्रजा का पालनेवाला स्वामी मनुष्य है, (तस्य) उसके (गन्धर्वः) जिससे वाणी आदि को धारण करता है (मनः) ज्ञान की सिद्धि करनेहारा मन (ऋक्सामानि) ऋग्वेद और सामवेद के मन्त्र (अप्सरसः) हृदयाकाश में व्याप्त प्राण आदि पदार्थों में जाती हुई क्रिया (एष्टयः) जिनसे विद्वानों का सत्कार, सत्य का सङ्ग और विद्या का दान होता है, ये सब (नाम) प्रसिद्ध हैं, जैसे (सः) वह (नः) हम लोगों के लिये (इदम्) इस (ब्रह्म) वेद और (क्षत्रम्) धनुर्वेद की (पातु) रक्षा करे, वैसे (तस्मै) उसके लिये (स्वाहा) सत्य वाणी (वाट्) धर्म की प्राप्ति और (ताभ्यः) उन उक्त पदार्थों के लिये (स्वाहा) सत्य क्रिया से उपकार को करो ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पुरुषार्थी, विचारशील, वेदविद्या के जाननेवाले होते हैं, वे ही संसार के भूषण होते हैं ॥४३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्जनैः कथं भवितव्यमित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(प्रजापतिः) प्रजायाः स्वामी (विश्वकर्मा) विश्वानि सर्वाणि कर्माणि यस्य सः (मनः) ज्ञानसाधनमन्तःकरणम् (गन्धर्वः) येन वागादीन् धरति सः (तस्य) (ऋक्सामानि) ऋक् च सामानि च तानि (अप्सरसः) या अप्सु व्याप्येषु प्राणादिपदार्थेषु सरन्ति गच्छन्ति ताः (एष्टयः) समन्तादिष्टयो विद्वत्पूजा सत्सङ्गो विद्यादानं च याभ्यस्ताः (नाम) संज्ञा (सः) (नः) (इदम्) (ब्रह्म) वेदम् (क्षत्रम्) धनुर्वेदम् (पातु) (तस्मै) (स्वाहा) (वाट्) (ताभ्यः) (स्वाहा) ॥४३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं यो विश्वकर्मा प्रजापतिर्मनुष्योऽस्ति, तस्य मनो गन्धर्व ऋक्सामान्यप्सरस एष्टयो नाम सन्ति, यथा स न इदं ब्रह्म क्षत्रं च पातु, तस्मै स्वाहा सत्या वाणी वाट् धर्मप्रापणं ताभ्यः स्वाहा सत्यया क्रिययोपकारं च कुरुत ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः पुरुषार्थिनो मनस्विनो वेदविदो जायन्ते, त एव जगद्भूषणाः सन्तीति वेद्यम् ॥४३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे पुरुषार्थी, विचारशील, वेदविद्या जाणणारी असतात तीच जगाचे भूषण ठरतात.