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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर मनुष्य क्या करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) रसविद्या के जाननेहारे विद्वन् ! जो मैं (पृथिव्याः) पृथिवी के (पयसा) रस के साथ (मा) अपने को (संसृजामि) मिलाता हूँ वा (अद्भिः) अच्छे शुद्ध जल और (ओषधीभिः) सोमलता आदि ओषधियों के साथ (मा) अपने को (संसृजामि) मिलाता हूँ, (सः) सो (अहम्) मैं (वाजम्) अन्न का (सनेयम्) सेवन करूँ, इसी प्रकार तू आचरण कर ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे मैं वैद्यक शास्त्र की रीति से अन्न और पान आदि को करके सुखी होता हूँ, वैसे तुम लोग भी प्रयत्न किया करो ॥३५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्युपदिश्यते ॥
अन्वय:
(सम्) एकीभावे (मा) माम् (सृजामि) संबध्नामि (पयसा) रसेन (पृथिव्याः) (सम्) (मा) (सृजामि) (अद्भिः) संसाधितैर्जलैः (ओषधीभिः) सोमलतादिभिः (सः) (अहम्) (वाजम्) अन्नम् (सनेयम्) संभजेयम् (अग्ने) विद्वन् ॥३५ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने रसविद्याविद्विद्वन् ! योऽहं पृथिव्याः पयसा मा संसृजामि, अद्भिरोषधीभिः सह च मा संसृजामि, सोऽहं वाजं सनेयमेवं त्वमप्याचर ॥३५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्याः ! यथाऽहं वैद्यकशास्त्ररीत्याऽन्नपानादिकं कृत्वा सुखी भवामि, तथा यूयमपि प्रयतध्वम् ॥३५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! वैद्यकशास्रानुसार मी जसे अन्न, पाणी घेऊन सुखी होतो तसा प्रयत्न तुम्हीही करा.