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वाजो॑ नः स॒प्त प्र॒दिश॒श्चत॑स्रो वा परा॒वतः॑। वाजो॑ नो॒ विश्वै॑र्दे॒वैर्धन॑सातावि॒हाव॑तु ॥३२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वाजः॑। नः॒। स॒प्त। प्र॒दिशः॒। इति॑ प्र॒दिशः॑। चत॑स्रः। वा॒। प॒रा॒वत॒ इति॑ परा॒ऽवतः॑। वाजः॑। नः॒। विश्वैः॑। दे॒वैः। धन॑साता॒विति॒ धन॑ऽसातौ। इ॒ह। अ॒व॒तु॒ ॥३२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:32


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वान् और प्रजाजन कैसे वर्त्तें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जैसे (विश्वैः) सब (देवैः) विद्वानों के साथ (वाजः) अन्नादि (इह) इस लोक में (धनसातौ) धन के विभाग करने में (नः) हम लोगों को (अवतु) प्राप्त होवे (वा) अथवा (नः) हम लोगों का (वाजः) शास्त्रज्ञान और वेग (सप्त) सात (प्रदिशः) जिनका अच्छे प्रकार उपदेश किया जाय, उन लोक-लोकान्तरों वा (परावतः) दूर-दूर जो (चतस्रः) पूर्व आदि चार दिशा उनको पाले अर्थात् सब पदार्थों की रक्षा करे, वैसे इनकी रक्षा तुम भी निरन्तर किया करो ॥३२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि बहुत अन्न से अपनी रक्षा तथा इस पृथिवी पर सब दिशाओं में अच्छी कीर्त्ति हो, इस प्रकार सत्पुरुषों का सन्मान किया करें ॥३२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वान् प्रजाश्च कथं वर्त्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

(वाजः) अन्नादिः (नः) अस्मान् (सप्त) (प्रदिशः) प्रदिश्यन्ते ताः (चतस्रः) पूर्वाद्या दिशः (वा) चार्थे (परावतः) दूरस्थाः (वाजः) शास्त्रबोधो वेगो वा (नः) अस्माकम् (विश्वैः) अखिलैः (देवैः) विद्वद्भिः (धनसातौ) धनानां संविभक्तौ (इह) अस्मिंल्लोके (अवतु) रक्षतु प्राप्नोतु वा ॥३२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वांसो यथा विश्वैर्देवैः सह वर्त्तमानो वाज इह धनसातौ नोऽवतु वा, नो वाजः सप्त प्रदिशः परावतश्चतस्रो दिशोऽवतु, तथैता यूयं सततं रक्षत ॥३२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः पुष्कलान्नेन स्वेषां पालनमस्यां पृथिव्यां सर्वासु दिक्षु सत्कीर्त्तिः स्यादिति सज्जना आदर्त्तव्याः ॥३२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - आपले रक्षण व्हावे म्हणून माणसांनी भरपूर अन्न प्राप्त करावे, तसेच या पृथ्वीवर सर्व दिशांना आपली कीर्ती पसरावी यासाठी सत्पुरुषांचा सन्मान करावा.