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वाज॑स्य॒ नु प्र॑स॒वे मा॒तरं॑ म॒हीमदि॑तिं॒ नाम॒ वच॑सा करामहे। यस्या॑मि॒दं विश्वं॒ भुव॑नमावि॒वेश॒ तस्यां॑ नो दे॒वः स॑वि॒ता धर्म॑ साविषत् ॥३० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वाज॑स्य। नु। प्र॒स॒वे इति॑ प्रऽस॒वे। मा॒तर॑म्। म॒हीम्। अदि॑तिम्। नाम॑। वच॑सा। का॒रा॒म॒हे॒। यस्या॑म्। इ॒दम्। विश्व॑म्। भुव॑नम्। आ॒वि॒वेशेत्याऽवि॒वेश॑। तस्या॑म्। नः॒। दे॒वः। स॒वि॒ता। धर्म॑। सा॒वि॒ष॒त् ॥३० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:30


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को कैसे किसकी उपासना करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वाजस्य) विविध प्रकार के उत्तम अन्न के (प्रसवे) उत्पन्न करने में (नु) ही वर्त्तमान हम लोग (मातरम्) मान्य की हेतु (अदितिम्) कारणरूप से नित्य (महीम्) भूमि को (नाम) प्रसिद्धि में (वचसा) वाणी से (करामहे) युक्त करें (यस्याम्) जिस पृथिवी में (इदम्) यह प्रत्यक्ष (विश्वम्) समस्त (भुवनम्) स्थूल जगत् (आविवेश) व्याप्त है, (तस्याम्) उस पृथिवी में (सविता) समस्त ऐश्वर्ययुक्त (देवः) शुद्धस्वरूप ईश्वर (न) हमारी (धर्म) उत्तम कर्मों की धारणा को (साविषत्) उत्पन्न करे ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - जिस जगदीश्वर ने सब का आधार जो भूमि बनाई, वह सब को धारण करती है, वही ईश्वर सब मनुष्यों को उपासना करने योग्य है ॥३० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्ममनुष्यैः कस्य कथमुपासना कार्येत्याह ॥

अन्वय:

(वाजस्य) विविधोत्तमस्यान्नस्य (नु) एव (प्रसवे) उत्पादने (मातरम्) मान्यनिमित्तम् (महीम्) महतीं भूमिम् (अदितिम्) कारणरूपेण नित्याम् (नाम) प्रसिद्धौ (वचसा) वचनेन (करामहे) कुर्य्याम। अत्र विकरणव्यत्ययेन शप् (यस्याम्) पृथिव्याम् (इदम्) प्रत्यक्षम् (विश्वम्) सर्वम् (भुवनम्) भवन्ति यस्मिँस्तत्स्थूलं जगत् (आविवेश) आविष्टमस्ति (तस्याम्) (नः) अस्माकम् (देवः) शुद्धस्वरूपः (सविता) सकलैश्वर्ययुक्त ईश्वरः (धर्म) धारणाम् (साविषत्) सुवतु ॥३० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - वाजस्य प्रसवे नु वर्त्तमाना वयं मातरमदितिं महीं नाम वचसा करामहे, यस्यामिदं विश्वं भुवनमाविवेश, तस्यां सविता देवो नो धर्म साविषत् ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - येन जगदीश्वरेण सर्वस्याधिकरणं या भूमिर्निर्मिता सा सर्वं धरति, स एव सर्वैमनुष्यैरुपासनीयः ॥३० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या ईश्वराने सर्वांचा आधार असलेली भूमी बनविलेली आहे ती सर्वांना धारण करते. तेव्हा तोच ईश्वर सर्वांनी उपासना करण्यायोग्य आहे.