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ओज॑श्च मे॒ सह॑श्च मऽआ॒त्मा च॑ मे त॒नूश्च॑ मे॒ शर्म॑ च मे॒ वर्म॑ च॒ मेऽङ्गा॑नि च॒ मेऽस्थी॑नि च मे॒ परू॑षि च मे॒ शरी॑राणि च म॒ऽआयु॑श्च मे ज॒रा च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ओजः॑। च॒। मे॒। सहः॑। च॒। मे॒। आ॒त्मा। च॒। मे॒। त॒नूः। च॒। मे॒। शर्म॑। च॒। मे॒। वर्म॑। च॒। मे॒। अङ्गा॑नि। च॒। मे॒। अस्थी॑नि। च॒। मे॒। परू॑षि। च॒। मे॒। शरी॑राणि। च॒। मे॒। आयुः॑। च॒। मे॒। ज॒रा। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:3


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे (ओजः) शरीर का तेज (च) और मेरी सेना (मे) मेरे (सहः) शरीर का बल (च) तथा मन (मे) मेरा (आत्मा) स्वरूप और (च) मेरा सामर्थ्य (मे) मेरा (तनूः) शरीर (च) और सम्बन्धीजन (मे) मेरा (शर्म) घर (च) और घर के पदार्थ (मे) मेरी (वर्म) रक्षा जिससे हो, वह बख्तर (च) और शस्त्र-अस्त्र (मे) मेरे (अङ्गानि) शिर आदि अङ्ग (च) और अङ्गुलि आदि प्रत्यङ्ग (मे) मेरे (अस्थीनि) हाड़ (च) और भीतर के अङ्ग प्रत्यङ्ग अर्थात् हृदय मांस नसें आदि (मे) मेरे (परूँषि) मर्मस्थल (च) और जीवन के कारण (मे) मेरे (शरीराणि) सम्बन्धियों के शरीर (च) और अत्यन्त छोटे-छोटे देह के अङ्ग (मे) मेरी (आयुः) उमर (च) तथा जीवन के साधन अर्थात् जिनसे जीते हैं (मे) मेरा (जरा) बुढ़ापा (च) और जवानी ये सब पदार्थ (यज्ञेन) सत्कार के योग्य परमेश्वर से (कल्पन्ताम्) समर्थ होवें ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषों को चाहिये कि धार्मिक सज्जनों की रक्षा और दुष्टों को दण्ड देने के लिये बली सेना आदि जनों को प्रवृत्त करें ॥३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(ओजः) शरीरस्थं तेजः (च) सेना (मे) (सहः) शारीरं बलम् (च) मानसम् (मे) (आत्मा) स्वस्वरूपम् (च) स्वसामर्थ्यम् (मे) (तनूः) शरीरम् (च) सम्बन्धिनः (मे) (शर्म) गृहम् (च) गृह्याः पदार्थाः (मे) (वर्म) रक्षकं कवचम् (च) शस्त्रास्त्राणि (मे) (अङ्गानि) (च) उपाङ्गानि (मे) (अस्थीनि) (च) अन्यान्तरङ्गानि (मे) (परूँषि) मर्मस्थलानि (च) जीवननिमित्तानि (मे) (शरीराणि) मत्सम्बन्धिनां देहाः (च) सूक्ष्मा देहावयवाः (मे) (आयुः) जीवनम् (च) जीवनसाधनानि (मे) (जरा) वृद्धावस्था (च) युवावस्था (मे) (यज्ञेन) सत्कर्त्तव्येन परमात्मना (कल्पन्ताम्) ॥३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे ओजश्च मे सहश्च म आत्मा च मे तनूश्च मे शर्म च मे वर्म च मेऽङ्गानि च मेऽस्थीनि च मे परूँषि च मे शरीराणि च म आयुश्च मे जरा च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥३ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषैः सबलाः सेनादयो धार्मिकरक्षणाय दुष्टताडनाय च प्रवर्त्तनीयाः ॥३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राज पुरुषांनी धार्मिक सज्जनांचे रक्षण व दुष्टांना दंड देण्यासाठी शरीराचे सर्व अवयव (मन, मस्तक, हृदय, अस्थि, मर्मस्थळ, अंगप्रत्यंग) सुदृढ करून धार्मिक सज्जनांचे रक्षण व दुष्टांना दंड देण्यासाठी सेनेला बलवान बनवून तयार ठेवावे.