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प॒ष्ठ॒वाट् च॑ मे पष्ठौ॒ही च॑ मऽउ॒क्षा च॑ मे व॒शा च॑ मऽऋष॒भश्च॑ मे वे॒हच्च॑ मेऽन॒ड्वाँश्च॑ मे धेनु॒श्च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥२७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प॒ष्ठ॒वाडिति॑ पष्ठ॒ऽवाट्। च॒। मे॒। प॒ष्ठौ॒ही। च॒। मे॒। उ॒क्षा। च॒। मे॒। व॒शा। च॒। मे॒। ऋ॒ष॒भः। च॒। मे॒। वे॒हत्। च॒। मे॒। अ॒न॒ड्वान्। च॒। मे॒। धे॒नुः। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥२७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:27


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे (पष्ठवाट्) पीठ से भार उठानेहारे हाथी, ऊँट आदि (च) और उनके सम्बन्धी (मे) मेरी (पष्ठौही) पीठ से भार उठाने हारी घोड़ी, ऊँटनी आदि (च) और उनसे उठाये गये पदार्थ (मे) मेरा (उक्षा) वीर्य सेचन में समर्थ वृषभ (च) और वीर्य धारण करनेवाली गौ आदि (मे) मेरी (वशा) वन्ध्या गौ (च) और वीर्यहीन बैल (मे) मेरा (ऋषभः) समर्थ बैल (च) और बलवती गौ (मे) मेरी (वेहत्) गर्भ गिरानेवाली (च) और सामर्थ्यहीन गौ (मे) मेरा (अनड्वान्) हल और गाड़ी आदि को चलाने में समर्थ बैल (च) और गाड़ीवान् आदि (मे) मेरी (धेनुः) नवीन व्यानी दूध देने हारी गाय (च) और उसको दोहनेवाला जन ये सब (यज्ञेन) पशुशिक्षारूप यज्ञकर्म से (कल्पन्ताम्) समर्थ होवें ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - जो पशुओं को अच्छी शिक्षा देके कार्यों में सयुक्त करते हैं, वे अपने प्रयोजन सिद्ध करके सुखी होते हैं ॥२७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(पष्ठवाट्) यः पष्ठेन पृष्ठेन वहति सो हस्त्युष्ट्रादिः (च) तत्सम्बन्धी (मे) (पष्ठौही) वडवादिः (च) हस्तिन्यादिभिरुत्थापिताः पदार्थाः (मे) (उक्षाः) वीर्यसेचकः (च) वीर्यधारिका (मे) (वशा) वन्ध्या गौः (च) वीर्यहीनः (मे) (ऋषभः) बलिष्ठः (च) बलवती (मे) (वेहत्) यस्य वीर्यं यस्या गर्भो वा विहन्यते स सा च (च) सामर्थ्यहीनः (मे) (अनड्वान्) हलशकटादिवहनसमर्थः (च) शकटवाही जनः (मे) (धेनुः) दुग्धदात्री (च) दोग्धा (मे) (यज्ञेन) पशुशिक्षाख्येन (कल्पन्ताम्) समर्थयन्तु ॥२७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे पष्टवाट् च मे पष्ठौही च म उक्षा च मे वशा च मे ऋषभश्च मे वेहच्च मेऽनड्वाँश्च मे धेनुश्च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥२७ ॥
भावार्थभाषाः - ये पशून् सुशिक्ष्य कार्येषु संयुञ्जते, ते सिद्धार्था जायन्ते ॥२७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे पशूंना चांगले शिक्षण देऊन त्यांच्याकडून काम करून घेतात ते आपले प्रयोजन सिद्ध करून सुखी होतात.