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त्र्यवि॑श्च मे त्र्य॒वी च॑ मे दित्य॒वाट् च॑ मे दित्यौ॒ही च॑ मे॒ पञ्चा॑विश्च मे पञ्चा॒वी च॑ मे त्रिव॒त्सश्च॑ मे त्रिव॒त्सा च॑ मे तुर्य॒वाट् च॑ मे तुर्यौ॒ही च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥२६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्र्यवि॒रिति॑ त्रि॒ऽअविः॑। च॒। मे॒। त्र्य॒वीति॑ त्रिऽअ॒वी। च॒। मे॒। दि॒त्य॒वाडिति॑ दित्य॒ऽवाट्। च॒। मे॒। दि॒त्यौ॒ही। च॒। मे॒। पञ्चा॑वि॒रिति॒ पञ्च॑ऽअविः। च॒। मे॒। प॒ञ्चा॒विति॑ पञ्चऽअ॒वी। च॒। मे॒। त्रि॒व॒त्स इति॑ त्रिऽव॒त्सः। च॒। मे॒। त्रि॒व॒त्सेति॑ त्रिऽव॒त्सा। च॒। मे॒। तु॒र्य॒वाडिति॑ तुर्य॒ऽवाट्। च॒। मे॒। तु॒र्यौ॒ही। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ताम् ॥२६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:26


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ पशुपालन विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरा (त्र्यविः) तीन प्रकार का भेड़ोंवाला (च) और इससे भिन्न सामग्री (मे) मेरी (त्र्यवी) तीन प्रकार की भेड़ोंवाली स्त्री (च) और इनसे उत्पन्न हुए घृतादि (मे) मेरे (दित्यवाट्) खण्डित क्रियाओं में हुए विघ्नों को पृथक् करनेवाला (च) और इसके सम्बन्धी (मे) मेरी (दित्यौही) उन्हीं क्रियाओं को प्राप्त कराने हारी गाय आदि (च) और उसकी रक्षा (मे) मेरा (पञ्चाविः) पाँच प्रकार की भेड़ोंवाला (च) और उसके घृतादि (मे) मेरी (पञ्चावी) पाँच प्रकार की भेड़ोंवाली स्त्री (च) और (मे) मेरा (त्रिवत्सः) तीन बछड़ेवाला (च) और उसके बछड़े आदि (मे) मेरी (त्रिवत्सा) तीन बछड़ेवाली गौ (च) और उसके घृतादि (मे) मेरा (तुर्यवाट्) चौथे वर्ष को प्राप्त हुआ बैल आदि (च) और इसको काम में लाना (मे) मेरी (तुर्यौही) चौथे वर्ष को प्राप्त गौ (च) और इसको शिक्षा ये सब पदार्थ (यज्ञेन) पशुओं के पालन के विधान से (कल्पन्ताम्) समर्थ होवें ॥२६ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में गौ और भेड़ के उपलक्षण से अन्य पशुओं का भी ग्रहण होता है। जो मनुष्य पशुओं को बढ़ाते हैं, वे इनके रसों से आढ्य होते हैं ॥२६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ पशुपालनविषयमाह ॥

अन्वय:

(त्र्यविः) तिस्रोऽवयो यस्य सः (च) अतो भिन्ना सामग्री (मे) (त्र्यवी) तिस्रोऽवयो यस्याः सा (च) एतज्जन्यं घृतादि (मे) (दित्यवाट्) दितौ खण्डितायां क्रियायां भवा दित्यास्तान् यो वहति पृथक् करोति सः (च) एतत्पालनम् (मे) (दित्यौही) तत्स्त्री (च) अन्यदपि (मे) (पञ्चाविः) पञ्चावयो यस्य सः (च) एतद्रक्षणम् (मे) (पञ्चावी) स्त्री (च) एतत्पालनम् (मे) (त्रिवत्सः) त्रयो वत्सा यस्य सः (च) एतच्छिक्षणम् (मे) (त्रिवत्सा) त्रयो वत्सा यस्याः सा (च) एतस्या रक्षा (मे) (तुर्यवाट्) यस्तुर्यं चतुर्थं वर्षं वहति प्राप्नोति स वृषभादिः। यस्य त्रीणि वर्षाणि पूर्णानि जातानि चतुर्थः प्रविष्टः स इत्यर्थः (च) अस्य शिक्षणम् (मे) (तुर्यौही) पूर्वोक्तसदृशी गौः (च) अस्याः शिक्षा (मे) (यज्ञेन) पशुपालनविधिना (कल्पन्ताम्) समर्थयन्तु ॥२६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे त्र्यविश्च मे त्र्यवी च मे दित्यवाट् च मे दित्यौही च मे पञ्चाविश्च मे पञ्चावी च मे त्रिवत्सश्च मे त्रिवत्सा च मे तुर्यवाट् च मे तुर्यौही च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥२६ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र गोजाविग्रहणमुपलक्षणार्थम्। ये मनुष्याः पशून् वर्द्धयन्ति ते रसाढ्या जायन्ते ॥२६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात गाई, बकरे, लांडगे यांच्या उपलक्षणाने इतर पशूंचेही आकलन होते. हे विधान पशूसंबंधी आहे हे समजले पाहिजे. जी माणसे पशूंचे पालन करतात. त्यांच्या दूध वगैरेने ती माणसे संपन्न होतात.