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व्र॒तं च॑ मऽऋ॒तव॑श्च मे॒ तप॑श्च मे संवत्स॒रश्च॑ मेऽहोरा॒त्रेऽऊ॑र्वष्ठी॒वे बृ॑हद्रथन्त॒रे च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥२३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व्र॒तम्। च॒। मे॒। ऋ॒तवः॑। च॒। मे॒। तपः॑। च॒। मे॒। सं॒व॒त्स॒रः। च॒। मे॒। अ॒हो॒रा॒त्रे इत्य॑होरा॒त्रे। ऊ॒र्व॒ष्ठी॒वेऽइत्यू॑र्वष्ठी॒वे। बृ॒ह॒द्र॒थ॒न्त॒रे इति॑ बृहत्ऽरथन्त॒रे। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥२३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:23


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे (व्रतम्) सत्य आचरण के नियम की पालना (च) और सत्य कहना और सत्य उपदेश (मे) मेरे (ऋतवः) वसन्त आदि ऋतु (च) और उत्तरायण दक्षिणायन (मे) मेरा (तपः) प्राणायाम तथा धर्म का आचरण (च) शीत उष्ण आदि का सहना (मे) मेरा (संवत्सरः) साल (च) तथा कल्प, महाकल्प आदि (मे) मेरे (अहोरात्रे) दिन-रात (ऊर्वष्ठीवे) जङ्घा और घोंटू (बृहद्रथन्तरे) बड़ा पदार्थ, अत्यन्त सुन्दर रथ तथा (च) घोड़े वा बैल (यज्ञेन) धर्मज्ञान आदि के आचरण और कालचक्र के भ्रमण के अनुष्ठान से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - जो पुरुष नियम किये हुए समय में काम और निरन्तर धर्म का आचरण करते हैं, वे चाही हुई सिद्धि को पाते हैं ॥२३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(व्रतम्) सत्याचरणनियमपालनम् (च) सत्यकथनं सत्योपदेशश्च (मे) (ऋतवः) वसन्ताद्याः (च) अयनम् (मे) (तपः) प्राणायामो धर्मानुष्ठानं वा (च) शीतोष्णादि द्वन्द्वसहनम् (मे) (संवत्सरः) द्वादशभिर्मासैरलंकृतः (च) कल्पमहाकल्पादि (मे) (अहोरात्रे) (ऊर्वष्ठीवे) ऊरू चाष्ठीवन्तौ च ते। अत्र अचतुरवि० ॥ (अष्टा०५.४.७७) इति निपातः ॥ (बृहद्रथन्तरे) बृहच्च रथन्तरं च ते (च) वोढॄन् (मे) (यज्ञेन) कालचक्रज्ञानधर्माद्यनुष्ठानेन (कल्पन्ताम्) ॥२३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे व्रतं च म ऋतवश्च मे तपश्च मे संवत्सरश्च मेऽहोरात्रे ऊर्वष्ठीवे बृहद्रथन्तरे च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥२३ ॥
भावार्थभाषाः - ये नियतसमये कार्याणि सततं धर्मं चाचरन्ति, तेऽभीष्टसिद्धिमाप्नुवन्ति ॥२३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे पुरुष नियमाने, वेळेवर काम करतात व सतत धर्माचे आचरण करतात ते स्वतःच्या इच्छेप्रमाणे सिद्धी प्राप्त करू शकतात.