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स्रुच॑श्च मे चम॒साश्च॑ मे वाय॒व्या᳖नि च मे द्रोणकल॒शश्च॑ मे॒ ग्रावा॑णश्च मेऽधि॒षव॑णे च मे पू॒त॒भृच्च॑ मऽआधव॒नीय॑श्च मे॒ वेदि॑श्च मे ब॒र्हिश्च॑ मेऽवभृ॒थश्च॑ मे स्वगाका॒रश्च॑ मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥२१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्रुचः॑। च॒। मे॒। च॒म॒साः। च॒। मे॒। वा॒य॒व्या᳖नि। च॒। मे॒। द्रो॒ण॒क॒ल॒श इति॑ द्रोणऽकल॒शः। च॒। मे॒। ग्रावा॑णः। च॒। मे॒। अ॒धि॒षव॑णे। अ॒धि॒सव॑ने॒ इत्य॑धि॒ऽसव॑ने। च॒। मे॒। पू॒त॒भृदिति॑ पूत॒ऽभृत्। च॒। मे॒। आ॒ध॒व॒नीय॒ इत्या॑ऽधव॒नीयः॑। च॒। मे॒। वेदिः॑। च॒। मे॒। ब॒र्हिः। च॒। मे॒। अ॒व॒भृ॒थ इत्य॑वऽभृ॒थः। च॒। मे॒। स्व॒गा॒का॒र इति॑ स्वगाऽका॒रः च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥२१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:21


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे (स्रुचः) स्रुवा आदि (च) और उनकी शुद्धि (मे) मेरे (चमसाः) यज्ञ वा पाक बनाने के पात्र (च) और उनके पदार्थ (मे) मेरे (वायव्यानि) पवनों में अच्छे पदार्थ (च) और पवनों की शुद्धि करनेवाले काम (मे) मेरा (द्रोणकलशः) यज्ञ की क्रिया का कलश (च) और विशेष परिमाण (मे) मेरे (ग्रावाणः) शिलबट्टा आदि पत्थर (च) और उखली-मूसल (मे) मेरे (अधिवषणे) सोमवल्ली आदि ओषधि जिनसे कूटी पीसी जावे, वे साधन (च) और कूटना-पीसना (मे) मेरा (पूतभृत्) पवित्रता जिससे मिलती हो, वह सूप आदि (च) और बुहारी आदि (मे) मेरा (आधवनीयः) अच्छे प्रकार धोने आदि का पात्र (च) और नलिका आदि यन्त्र अर्थात् जिस नली नरकुल की चोगी आदि से तारागणों को देखते हैं, वह (मे) मेरी (वेदिः) होम करने की वेदि (च) और चौकाना आदि (मे) मेरा (बर्हिः) समीप में वृद्धि देनेवाला वा कुशसमूह (च) और जो यज्ञसमय के योग्य पदार्थ (मे) मेरा (अवभृथः) यज्ञसमाप्ति समय का स्नान (च) और चन्दन आदि का अनुलेपन करना तथा (मे) मेरा (स्वगाकारः) जिससे अपने पदार्थों को प्राप्त होते हैं, उस कर्म को जो करे वह (च) और पदार्थ को पवित्र करना ये सब (यज्ञेन) होम करने की क्रिया से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - वे ही मनुष्य यज्ञ करने को समर्थ होते हैं, जो साधन उपसाधनरूप यज्ञ के सिद्ध करने की सामग्री को पूरी करते हैं ॥२१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(स्रुचः) जुह्वादयः (च) तच्छुद्धिः (मे) (चमसाः) होमभोजनपात्राणि (च) उपकरणानि (मे) (वायव्यानि) वायुषु साधूनि (च) पवनशुद्धिकराणि (मे) (द्रोणकलशः) द्रोणश्चासौ कलशश्च पात्रविशेषः (च) परिमाणविशेषाः (मे) (ग्रावाणः) शिलाफलकादयः (च) मुसलोलूखले (मे) (अधिषवणे) सोमलताद्योषधिसाधके (च) कुट्टनपेषणक्रिया (मे) (पूतभृत्) येन पूतं बिभर्त्ति तच्छुद्धिकरं सूर्यादिकम् (च) मार्जन्यादिकम् (मे) (आधवनीयः) आधवनसाधनपात्रविशेषः (च) मल्लिकादयः (मे) (वेदिः) यत्र हूयते (च) चतुष्कादिः (मे) (बर्हिः) उपवर्धको दर्भसमूहः (च) तद्योग्यम् (मे) (अवभृथः) यज्ञान्तस्नानादिकम् (च) सुगन्धलेपनम् (मे) (स्वगाकारः) येन स्वान् पदार्थान् गाते तं करोतीति (च) पवित्रीकरणम् (मे) (यज्ञेन) हवनादिना (कल्पन्ताम्) समर्थयन्तु ॥२१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे स्रुचश्च मे चमसाश्च मे वायव्यानि च मे द्रोणकलश्च मे ग्रावाणश्च मेऽधिषवणे च मे पूतभृच्च म आधवनीयश्च मे वेदिश्च मे बर्हिश्च मेऽवभृथश्च मे स्वगाकारश्च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥२१ ॥
भावार्थभाषाः - त एव मनुष्या यज्ञं कर्त्तुं शक्नुवन्ति, ये साधनोपसाधनसामग्रीरलंकुर्वन्ति ॥२१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे साधन उपसाधनरूपी यज्ञ सिद्ध करण्याची सामुग्री बाळगतात तीच माणसे यज्ञ करण्यास समर्थ ठरतात.