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अ॒ग्निश्च॑ म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ सोम॑श्च म॒ऽइ॒न्द्र॑श्च मे सवि॒ता च॑ म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ सर॑स्वती च म॒ऽइन्द्र॑श्च मे पू॒षा च॑ म॒ऽइन्द्र॑श्च मे॒ बृह॒स्पति॑श्च म॒ऽइन्द्र॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥१६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒ग्निः। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। सोमः॑। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। स॒वि॒ता। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। सर॑स्वती। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। पू॒षा। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। बृह॒स्पतिः॑। च॒। मे॒। इन्द्रः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:16


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरा (अग्निः) प्रसिद्ध सूर्यरूप अग्नि (च) और पृथिवी पर मिलनेवाला भौतिक (मे) मेरा (इन्द्रः) बिजुलीरूप अग्नि (च) तथा पवन (मे) मेरा (सोमः) शन्तिगुणवाला पदार्थ वा मनुष्य (च) और वर्षा मेघ जल (मे) मेरा (इन्द्रः) अन्याय को दूर करनेवाला सभापति (च) और सभासद् (मे) मेरा (सविता) ऐश्वर्ययुक्त काम (च) और इसके साधन (मे) मेरा (इन्द्रः) समस्त अविद्या का नाश करनेवाला अध्यापक (च) और विद्यार्थी (मे) मेरा (सरस्वती) प्रशंसित बोध वा शिक्षा से भरी हुई वाणी (च) और सत्य बोलनेवाला (मे) मेरा (इन्द्रः) विद्यार्थी की जड़ता का विनाश करनेवाला उपदेशक (च) और सुननेवाले (मे) मेरा (पूषा) पुष्टि करनेवाला (च) और योग्य आहार=भोजन, विहार=सोना आदि (मे) मेरा जो (इन्द्रः) पुष्टि करने की विद्या में रम रहा है, वह (च) और वैद्य (मे) मेरा (बृहस्पतिः) बड़े-बड़े व्यवहारों की रक्षा करनेवाला (च) और राजा तथा (मे) मेरा (इन्द्रः) समस्त ऐश्वर्य का बढ़ानेवाला उद्योगी (च) और सेनापति ये सब (यज्ञेन) विद्या और ऐश्वर्य की उन्नति करने से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोगों को अच्छे विचार से अपने सब पदार्थ उत्तमों का पालन करने और दुष्टों को शिक्षा देने के लिये निरन्तर युक्त करने चाहिये ॥१६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अग्निः) सूर्यः प्रसिद्धस्वरूपः (च) भौमः (मे) (इन्द्रः) विद्युत् (च) वायुः (मे) (सोमः) सोम्यगुणसम्पन्नो जनः पदार्थो वा (च) वृष्टिः (मे) (इन्द्रः) अन्यायविदारकः सभेशः (च) सभ्याः (मे) (सविता) ऐश्वर्य्ययुक्तः (च) एतत्साधनानि (मे) (इन्द्रः) सकलाऽविद्याच्छेदकोऽध्यापकः (च) विद्यार्थिनः (मे) (सरस्वती) प्रशस्तबोधः शिक्षायुक्ता वाणी वा (च) सत्यवक्ता (मे) (इन्द्रः) विद्यार्थिनो जाड्यविच्छेदक उपदेशकः (च) श्रोतारः (मे) (पूषा) पोषकः (च) युक्ताहारविहारौ (मे) (इन्द्रः) यः पुष्टिकरणविद्यायां रमते (च) वैद्यः (मे) (बृहस्पतिः) बृहतां व्यवहाराणां रक्षकः (च) राजा (मे) (इन्द्रः) सकलैश्वर्यवर्द्धकः (च) सेनेशः (मे) (यज्ञेन) विद्यैश्वर्य्योन्नतिकरणेन (कल्पन्ताम्) ॥१६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मेऽग्निश्च म इन्द्रश्च मे सोमश्च म इन्द्रश्च मे सविता च म इन्द्रश्च मे सरस्वती च म इन्द्रश्च मे पूषा च म इन्द्रश्च मे बृहस्पतिश्च म इन्द्रश्च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥१६ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! युष्माभिः सुविचारेण स्वकीयाः सर्वे पदार्थाः श्रेष्ठपालनाय दुष्टशिक्षणाय च सततं योजनीयाः ॥१६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! तुम्ही नेहमी चांगले विचार ठेवा व आपले सर्व पदार्थ उत्तमांचे पालन व दुष्टांना दंड देण्यासाठी उपयोगात आणा.