वसु॑ चे मे वस॒तिश्च॑ मे॒ कर्म॑ च मे॒ शक्ति॑श्च॒ मेऽर्थ॑श्च म॒ऽएम॑श्च मऽइ॒त्या च॑ मे॒ गति॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥१५ ॥
वसु॑। च॒। मे॒। व॒स॒तिः। च॒। मे॒। कर्म॑। च॒। मे॒। शक्तिः॑। च॒। मे॒। अर्थः॑। च॒। मे॒। एमः॑। च॒। मे॒। इ॒त्या। च॒। मे॒। गतिः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१५ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
(वसु) वस्तु (च) प्रियम् (मे) (वसतिः) यत्र वसन्ति सा (च) सामन्ता (मे) (कर्म) अभीप्सिततमा क्रिया (च) कर्त्ता (मे) (शक्तिः) सामर्थ्यम् (च) प्रेम (मे) (अर्थः) सकलपदार्थसञ्चयः (च) सञ्चेता (मे) (एमः) एति येन स प्रयत्नः (च) बोधः (मे) (इत्या) एमि जानामि यया रीत्या सा (च) युक्तिः (मे) (गतिः) गमनम् (च) उत्क्षेपणादि कर्म (मे) (यज्ञेन) पुरुषार्थानुष्ठानेन (कल्पन्ताम्) ॥१५ ॥