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व्री॒हय॑श्च मे॒ यवा॑श्च मे॒ माषा॑श्च मे॒ तिला॑श्च मे मु॒द्गाश्च॑ मे॒ खल्वा॑श्च मे प्रि॒यङ्ग॑वश्च॒ मेऽण॑वश्च मे श्या॒माका॑श्च मे नी॒वारा॑श्च मे गो॒धूमा॑श्च मे म॒सूरा॑श्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥१२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व्री॒हयः॑। च॒। मे॒। यवाः॑। च॒। मे॒। माषाः॑। च॒। मे॒। तिलाः॑। च॒। मे॒। मु॒द्गाः। च॒। मे॒। खल्वाः॑। च॒। मे॒। प्रि॒यङ्ग॑वः। च॒। मे॒। अण॑वः। च॒। मे॒। श्या॒माकाः॑। च॒। मे॒। नी॒वाराः॑। च॒। मे॒। गो॒धूमाः॑। च॒। मे॒। म॒सूराः॑। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:12


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरे (व्रीहयः) चावल (च) और साठी के धान (मे) मेरे (यवाः) जौ (च) और अरहर (मे) मेरे (माषाः) उरद (च) और मटर (मे) मेरा (तिलाः) तिल (च) और नारियल (मे) मेरे (मुद्गाः) मूँग (च) और उसका बनाना (मे) मेरे (खल्वाः) चणे (च) और उनका सिद्ध करना (मे) मेरी (प्रियङ्गवः) कंगुनी (च) और उसका बनाना (मे) मेरे (अणवः) सूक्ष्म चावल (च) और उनका पाक (मे) मेरा (श्यामाकाः) समा (च) और मडुआ, पटेरा, चेना आदि छोटे अन्न (मे) मेरा (नीवाराः) पसाई के चावल जो कि विना बोए उत्पन्न होते हैं (च) और इनका पाक (मे) मेरे (गोधूमाः) गेहूँ (च) और उन को पकाना तथा (मे) मेरी (मसूराः) मसूर (च) और उनका सम्बन्धी अन्य अन्न ये सब (यज्ञेन) सब अन्नों के दाता परमेश्वर से (कल्पन्ताम्) समर्थ हों ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि चावल आदि से अच्छे प्रकार संस्कार किये हुए भात आदि को बना अग्नि में होम करें तथा आप खावें, औरों को खवावें ॥१२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(व्रीहयः) तण्डुलाः (च) षष्टिकाः (मे) (यवाः) (च) आढक्यः (मे) (माषाः) (च) कलायाः (मे) (तिलाः) (च) नारिकेलाः (मे) (मुद्गाः) (च) तत्संस्काराः (मे) (खल्वाः) चणकाः (च) तत्साधनम् (मे) (प्रियङ्गवः) धान्यविशेषाः (च) अन्यानि क्षुद्रान्नानि (मे) (अणवः) सूक्ष्मतण्डुलाः (च) तत्पाकः (मे) (श्यामाकाः) (च) (मे) (नीवाराः) विना वपनेनोत्पन्नाः (च) एतत्संस्करणम् (मे) (गोधूमाः) (च) एतत्संस्करणम् (मे) (मसूराः) (च) एतत्सम्बन्धि (मे) (यज्ञेन) सर्वान्नप्रदेन परमात्मना (कल्पन्ताम्) ॥१२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे व्रीहयश्च मे यवाश्च मे माषाश्च मे तिलाश्च मे मुद्गाश्च मे खल्वाश्च मे प्रियङ्गवश्च मेऽणवश्च मे श्यामाकाश्च मे नीवाराश्च मे गोधूमाश्च मे मसूराश्च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥१२ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्व्रीह्यादिभ्यः सुसंस्कृतानोदनादीन् संपाद्य तेऽग्नौ होतव्या भोक्तव्या, अन्ये भोजयितव्याश्च ॥१२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी चांगल्याप्रकारे संस्कारित केलेला भात इत्यादी पदार्थांची अग्नीमध्ये आहुती द्यावी. स्वतः खावेत व इतरांनाही खावू घालावेत.