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र॒यिश्च॑ मे॒ राय॑श्च मे पु॒ष्टं च॑ मे॒ पुष्टि॑श्च मे वि॒भु च॑ मे प्र॒भु च॑ मे पू॒र्णं च॑ मे पू॒र्णत॑रं च मे॒ कुय॑वं च॒ मेऽक्षि॑तं च॒ मेऽन्नं॑ च॒ मेऽक्षु॑च्च मे य॒ज्ञेन॑ कल्पन्ताम् ॥१० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

र॒यिः। च॒। मे॒। रायः॑। च॒। मे॒। पु॒ष्टम्। च॒। मे॒। पुष्टिः॑। च॒। मे॒। वि॒भ्विति॑ वि॒ऽभु। च॒। मे॒। प्र॒भ्विति॑ प्र॒ऽभु। च॒। मे॒। पू॒र्णम्। च॒। मे॒। पू॒र्णत॑र॒मिति॑ पू॒र्णऽत॑रम्। च॒। मे॒। कुय॑वम्। च॒। मे॒। अक्षि॑तम्। च॒। मे॒। अन्न॑म्। च॒। मे॒। अक्षु॑त्। च॒। मे॒। य॒ज्ञेन॑। क॒ल्प॒न्ता॒म् ॥१० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:18» मन्त्र:10


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (मे) मेरी (रयिः) विद्या की कान्ति (च) और पुरुषार्थ (मे) मेरे (रायः) प्रशंसित धन (च) और पक्वान्न आदि (मे) मेरे (पुष्टम्) पुष्ट पदार्थ (च) और आरोग्यपन (मे) मेरी (पुष्टिः) पुष्टि (च) और पथ्य भोजन (मे) मेरा (विभु) सब विषयों मे व्याप्त मन आदि (च) परमात्मा का ध्यान (मे) मेरा (प्रभु) समर्थ व्यवहार (च) और सब सामर्थ्य (मे) मेरा (पूर्णम्) पूर्ण काम का करना (च) और उस का साधन (मे) मेरे (पूर्णतरम्) आभूषण, गौ, भैंस, घोड़ा, छेरी तथा अन्न आदि पदार्थ (च) और सब का उपकार करना (मे) मेरा (कुयवम्) निन्दित यवों से न मिला हुआ अन्न (च) और धान चावल आदि अन्न (मे) मेरा (अक्षितम्) अक्षय पदार्थ (च) और तृप्ति (मे) मेरा (अन्नम्) खाने योग्य अन्न (च) और मसाला आदि तथा (मे) मेरी (अक्षुत्) क्षुधा की तृप्ति (च) और प्यास आदि की तृप्ति ये सब पदार्थ (यज्ञेन) प्रशंसित धनादि देनेवाले परमात्मा से (कल्पन्ताम्) समर्थ होवें ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को परम पुरुषार्थ और ईश्वर की भक्ति, प्रार्थना से विद्या आदि धन पाकर सब का उपकार सिद्ध करना चाहिये ॥१० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(रयिः) विद्याश्रीः (च) पुरुषार्थः (मे) (रायः) प्रशस्तलक्ष्म्यः (च) पक्वान्नादिकम् (मे) (पुष्टम्) (च) आरोग्यम् (मे) (पुष्टिः) पुष्टिकरणम् (च) सुपथ्यम् (मे) (विभु) अखिलविषयेषु व्याप्तं मन आदि (च) परमात्मध्यानम् (मे) (प्रभु) समर्थम् (च) सर्वसामर्थ्यम् (मे) (पूर्णम्) अलङ्कारि (च) एतत्साधनम् (मे) (पूर्णतरम्) अतिशयेन पूर्णमाभरणादिकम् (च) सर्वमुपकरणम् (मे) (कुयवम्) कुत्सितैर्यवैर्वियुक्तम् (च) व्रीह्यादिकम् (मे) (अक्षितम्) क्षयरहितम् (च) तृप्तिः (मे) (अन्नम्) अत्तुं योग्यम् (च) व्यञ्जनम् (मे) (अक्षुत्) क्षुधाराहित्यम् (च) तृषादिराहित्यम् (मे) (यज्ञेन) प्रशस्तधनप्रापकेणेश्वरेण (कल्पन्ताम्) ॥१० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मे रयिश्च मे रायश्च मे पुष्टं च मे पुष्टिश्च मे विभु च मे प्रभु च मे पूर्णं च मे पूर्णतरं च मे कुयवं च मेऽक्षितं च मेऽन्नं च मेऽक्षुच्च यज्ञेन कल्पन्ताम् ॥१० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः परमपुरुषार्थेन जगदीश्वरभक्तिप्रार्थनाभ्यां च विद्यादिकं धनं लब्ध्वा सर्वोपकारः साधनीयः ॥१० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी परम पुरुषार्थ करावा. ईश्वरभक्ती व प्रार्थना करून विद्या इत्यादी धन प्राप्त करावे व सर्वांवर उपकार करावा.