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क॒न्या᳖ऽइव वह॒तुमेत॒वा उ॑ऽअ॒ञ्ज्य᳖ञ्जा॒नाऽअ॒भि चा॑कशीमि। यत्र॒ सोमः॑ सू॒यते॒ यत्र॑ य॒ज्ञो घृ॒तस्य॒ धारा॑ऽअ॒भि तत्प॑वन्ते ॥९७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

क॒न्या᳖ऽइ॒वेति॑ क॒न्याः᳖ऽइव। व॒ह॒तुम्। एत॒वै। ऊँ॒ऽइत्यूँ॑। अ॒ञ्जि। अ॒ञ्जा॒नाः। अ॒भि। चा॒क॒शी॒मि॒। यत्र॑। सोमः॑। सू॒यते॑। यत्र॑। य॒ज्ञः। घृ॒तस्य॑। धाराः॑। अ॒भि। तत्। प॒व॒न्ते॒ ॥९७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:97


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अञ्जि) चाहने योग्य रूप को (अञ्जानाः) प्रकट करती हुई (वहतुम्) प्राप्त होनेवाले पति को (एतवै) प्राप्त होने के लिये (कन्या इव) जैसे कन्या शोभित होती हैं, वैसे (यत्र) जहाँ (सोमः) बहुत ऐश्वर्य्य (सूयते) उत्पन्न होता (उ) और (यत्र) जहाँ (यज्ञः) यज्ञ होता है, (तत्) वहाँ जो (घृतस्य) ज्ञान की (धाराः) वाणी (अभि, पवन्ते) सब ओर से पवित्र होती हैं, उनको मैं (अभि चाकशीमि) अच्छे प्रकार बार-बार प्राप्त होता हूँ ॥९७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे कन्या स्वयंवर के विधान से अपनी इच्छा के अनुकूल पतियों को स्वीकार करके शोभित होती हैं, वैसे ऐश्वर्य्य उत्पन्न होने के अवसर और यज्ञसिद्धि में विद्वानों की वाणी पवित्र हुई शोभायमान होती हैं ॥९७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(कन्याऽइव) कुमार्य्य इव (वहतुम्) वहति प्राप्नोति स्त्रियमिति वहतुर्भर्त्ता तम् (एतवै) प्राप्तुम् (उ) वितर्के (अञ्जि) कमनीयरूपम् (अञ्जानाः) ज्ञापयन्तः (अभि) (चाकशीमि) पुनः पुनः प्राप्नोमि (यत्र) (सोमः) ऐश्वर्यसमूहः (सूयते) उत्पद्यते (यत्र) (यज्ञः) (घृतस्य) विज्ञानस्य (धाराः) (अभि) सर्वतः (तत्) (पवन्ते) पवित्रीभवन्ति ॥९७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - अञ्ज्यञ्जाना वहतुमेतवै कन्या इव यत्र सोमः सूयते, उ यत्र च यज्ञस्तद्या घृतस्य धारा अभिपवन्ते ता अहमभि चाकशीमि ॥९७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा कन्याः स्वयंवरविधानेन स्वाभीष्टान् पतीन् स्वीकृत्य शोभन्ते, तथा ऐश्वर्य्योत्पत्त्यवसरे यज्ञसमृद्धौ च विदुषां वाचः पवित्रास्सत्यः शोभन्ते ॥९७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्याप्रमाणे कन्या स्वयंवर पद्धतीने आपल्या इच्छेनुसार पती प्राप्त करून सुशोभित होतात तशी विद्वानांची वाणी ऐश्वर्य निर्माण करते व यज्ञसिद्धी करताना शोभून दिसते.