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त्रिधा॑ हि॒तं प॒णिभि॑र्गु॒ह्यमा॑नं॒ गवि॑ दे॒वासो॑ घृ॒तमन्व॑विन्दन्। इन्द्र॒ऽएक॒ꣳ सूर्य॒ऽएक॑ञ्जजान वे॒नादेक॑ꣳस्व॒धया॒ निष्ट॑तक्षुः ॥९२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्रिधा॑। हि॒तम्। प॒णिभि॒रिति॑ प॒णिऽभिः॑। गु॒ह्यमा॑नम्। गवि॑। दे॒वासः॑। घृ॒तम्। अनु॑। अ॒वि॒न्द॒न्। इन्द्रः॑। एक॑म्। सूर्यः॑। एक॑म्। ज॒जा॒न॒। वे॒नात्। एक॑म्। स्व॒धया॑। निः। त॒त॒क्षुः॒ ॥९२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:92


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मनुष्यों को कैसे वर्त्तना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (देवासः) विद्वान् जन (पणिभिः) व्यवहार के ज्ञाता स्तुति करनेवालों ने (त्रिधा) तीन प्रकार से (हितम्) स्थित किये और (गवि) वाणी में (गुह्यमानम्) छिपे हुए (घृतम्) प्रकाशित ज्ञान को (अनु, अविन्दन्) खोजने के पीछे पाते हैं, (इन्द्रः) बिजुली जिस (एकम्) एक विज्ञान और (सूर्यः) सूर्य (एकम्) एक विज्ञान को (जजान) उत्पन्न करते तथा (वेनात्) अति सुन्दर मनोहर बुद्धिमान् से तथा (स्वधया) आप धारण की हुई क्रिया से (एकम्) अद्वितीय विज्ञान को (निः) निरन्तर (ततक्षुः) अतितीक्ष्ण सूक्ष्म करते हैं, वैसे तुम लोग भी आचरण करो ॥९२ ॥
भावार्थभाषाः - तीन प्रकार के स्थूल, सूक्ष्म और कारण के ज्ञान करानेहारे बिजुली तथा सूर्य के प्रकार के तुल्य प्रकाशित बोध को आप्त अर्थात् उत्तम शास्त्रज्ञ विद्वानों से जो मनुष्य प्राप्त हों, वे अपने ज्ञान को व्याप्त करें ॥९२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्यैः कथं वर्त्तितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(त्रिधा) त्रिभिः प्रकारैः (हितम्) स्थितम् (पणिभिः) व्यवहारज्ञैः स्तावकैः (गुह्यमानम्) रहसि स्थितम् (गवि) वाचि (देवासः) विद्वांसः (घृतम्) प्रदीप्तं विज्ञानम् (अनु) (अविन्दन्) लभन्ते (इन्द्रः) विद्युत् (एकम्) (सूर्यः) सविता (एकम्) (जजान) जनयति (वेनात्) कमनीयात् मेधाविनः। वेन इति मेधाविनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.१५) (एकम्) विज्ञानम् (स्वधया) स्वेन धारितया क्रियया (निः) नितराम् (ततक्षुः) तनूकुर्य्युः ॥९२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा देवासः पणिभिस्त्रिधा हितं गवि गुह्यमानं घृतमन्वविन्दन् यदीन्द्र एकं सूर्य एकं जजान वेनाच्च स्वधयैकं निष्टतक्षुस्तथा यूयमप्याचरत ॥९२ ॥
भावार्थभाषाः - त्रिप्रकारकं स्थूलसूक्ष्मकारणविज्ञापकं तं विद्युत्सूर्यप्रकाशमिव प्रकाशितमाप्तेभ्यो ये मनुष्याः प्राप्नुयुस्ते स्वकीयं ज्ञानं व्याप्तं कुर्युः ॥९२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या माणसांना उत्तम शास्त्राकडून विद्युत व सूर्यप्रकाश यांचे स्थूल, सूक्ष्म व कारण या तिन्ही प्रकारचे ज्ञान होते त्यांनी आपल्या ज्ञानाची व्याप्ती वाढवावी.