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स्वत॑वाँश्च प्रघा॒सी च॑ सान्तप॒नश्च॑ गृहमे॒धी च॑। क्री॒डी च॑ शा॒की चो॑ज्जे॒षी ॥८५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्वत॑वा॒निति॒ स्वऽत॑वान्। च॒। प्र॒घा॒सीति॑ प्रऽघा॒सी। च॒। सा॒न्त॒प॒न इति॑ साम्ऽतप॒नः। च॒। गृ॒ह॒मे॒धीति॑ गृ॒ह॒मे॒धी। च॒। क्री॒डी। च॒। शा॒की। च॒। उ॒ज्जे॒षीत्यु॑त्ऽजे॒षी ॥८५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:85


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह विद्वान् कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो (स्वतवान्) अपनों की वृद्धि करानेवाला (च) और (प्रघासी) जिसके बहुत भोजन करने योग्य पदार्थ विद्यमान हैं, ऐसा (च) और (सान्तपनः) अच्छे प्रकार शत्रुजनों को तपाने (च) और (गृहमेधी) जिसका प्रशंसायुक्त घर में सङ्ग ऐसा (च) और (क्रीडी) अवश्य खेलने के स्वभाववाला (च) और (शाकी) अवश्य शक्ति रखने का स्वभाववाला (च) भी हो, वह (उज्जेषी) मन से अत्यन्त जीतनेवाला हो ॥८५ ॥
भावार्थभाषाः - जो बहुत बल और अन्न के सामर्थ्य से युक्त गृहस्थ होता है, वह सब जगह विजय को प्राप्त होता है ॥८५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्स विद्वान् कीदृशो भवेदित्याह ॥

अन्वय:

(स्वतवान्) यः स्वान् तौति वर्द्धयति सः। अत्र तू धातोरौणादिक आनिः प्रत्ययः (च) (प्रघासी) बहवः प्रकृष्टा घासा भोज्यानि विद्यन्ते यस्य सः (च) (सान्तपनः) सम्यक् शत्रून् तापयति तस्यायम् (च) (गृहमेधी) प्रशस्तो गृहे मेधः सङ्गमोऽस्यास्तीति सः (च) (क्रीडी) (च) अवश्यं क्रीडितुं शीलः (शाकी) अवश्यं शक्तुं शीलः (च) (उज्जेषी) उत्कृष्टतया जेतुं शीलः ॥८५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यः स्वतवांश्च प्रघासी च सान्तपनश्च गृहमेधी च क्रीडी च शाकी च भवेत्, स उज्जेषी स्यात् ॥८५ ॥
भावार्थभाषाः - यो बहुबलान्नसामर्थ्यो गृहस्थो भवति, स सर्वत्र विजयमाप्नोति ॥८५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्या गृहस्थाजवळ अत्यंत बळ व अन्न सामर्थ्य असते त्याला सर्व ठिकाणी विजय प्राप्त होतो.