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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर ईश्वर कैसा है, यह अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (ऋतः) सत्य का जाननेवाला (च) भी (सत्यः) श्रेष्ठों में श्रेष्ठ (च) भी (ध्रुवः) निश्चययुक्त (च) भी (धरुणः) सब का आधार (च) भी (धर्त्ता) धारण करनेवाला (च) भी (विधर्त्ता) विशेष करके धारण करनेवाला अर्थात् धारकों का धारक (च) भी और (विधारयः) विशेष करके सब व्यवहार का धारण करानेवाला परमात्मा है, सब लोग उसी की उपासना करें ॥८२ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्या, उत्साह, सज्जनों का सङ्ग और पुरुषार्थ से सत्य और विशेष ज्ञान को धारण कर, अच्छे स्वभाव को धारण करते हैं, वे ही आप सुखी हो सकते और दूसरों को कर भी सकते हैं ॥८२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनरीश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥
अन्वय:
(ऋतः) सत्यज्ञानः (च) (सत्यः) सत्सु साधुः (च) (ध्रुवः) दृढनिश्चयः (च) (धरुणः) आधारः (च) (धर्त्ता) (च) (विधर्त्ता) (च) (विधारयः) यो विशेषेण धारयति सः ॥८२ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! य ऋतश्च सत्यश्च ध्रुवश्च धरुणश्च धर्त्ता च विधर्त्ता च विधारयः परमात्माऽस्ति, तमेव इति सर्व उपासीरन् ॥८२ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विद्योत्साहसत्सङ्गपुरुषार्थैः सत्यविज्ञाने धृत्वा सुशीलतां धरन्ति, त एव सुखिनो भवितुमन्याँश्च कर्त्तुं शक्नुवन्ति ॥८२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे विद्या, उत्साह, सज्जनांची संगती, पुरुषार्थाने सत्य व विशेष ज्ञान ग्रहण करतात व उत्तम स्वभावामुळे स्वतः सुखी होतात ते इतरांनाही सुखी करू शकतात.