वांछित मन्त्र चुनें

शु॒क्रज्यो॑तिश्च चि॒त्रज्यो॑तिश्च स॒त्यज्योति॑श्च॒ ज्योति॑ष्माँश्च। शु॒क्रश्च॑ऽऋत॒पाश्चात्य॑ꣳहाः ॥८० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शु॒क्रज्यो॑ति॒रिति॑ शु॒क्रऽज्यो॑तिः। च॒। चि॒त्रज्यो॑ति॒रिति॑ चि॒त्रऽज्यो॑तिः। च॒। स॒त्यज्यो॑ति॒रिति॑ स॒त्यऽज्यो॑तिः। च॒। ज्योति॑ष्मान्। च॒। शु॒क्रः। च॒। ऋ॒त॒पा इत्यृ॑त॒ऽपाः। च॒। अत्य॑ꣳहा॒ इत्यति॑ऽअꣳहाः ॥८० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:80


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर कैसा है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (शुक्रज्योतिः) शुद्ध जिसका प्रकाश (च) और (चित्रज्योतिः) अद्भुत जिसका प्रकाश (च) और (सत्यज्योतिः) विनाशरहित जिसका प्रकाश (च) और (ज्योतिष्मान्) जिस के बहुत प्रकाश हैं (च) और (शुक्रः) शीघ्र करनेवाला वा शुद्धस्वरूप (च) और (अत्यंहाः) जिसने दुष्ट काम को दूर किया (च) और (ऋतपाः) सत्य की रक्षा करनेवाला ईश्वर है, वैसे तुम लोग भी होओ ॥८० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे इस जगत् में बिजुली वा सूर्य आदि प्रजा और शुद्धि के करनेवाले पदार्थों को बना कर ईश्वर ने जगत् शुद्ध किया है, वैसे ही शुद्धि, सत्य और विद्या के उपदेश की क्रियाओं से विद्वान् जनों को मनुष्यादि शुद्ध करने चाहियें। इस मन्त्र में अनेक चकारों के होने से यह भी ज्ञात होता है कि सब के ऊपर प्रीति आदि गुण भी विधान करने चाहियें ॥८० ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

अन्वय:

(शुक्रज्योतिः) शुक्रं शुद्धं ज्योतिर्यस्य सः (च) (चित्रज्योतिः) चित्रमद्भुतं ज्योतिर्यस्य सः (च) (सत्यज्योतिः) सत्यमविनाशि ज्योतिः प्रकाशो यस्य सः (च) (ज्योतिष्मान्) बहूनि ज्योतींषि प्रकाशा विद्यन्ते यस्य सः (च) (शुक्रः) शीघ्रकर्त्ता शुद्धस्वरूपो वा (च) (ऋतपाः) य ऋतं सत्यं पाति (च) (अत्यंहाः) अतिक्रान्तमंहो दुष्कृतं येन सः ॥८० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा शुक्रज्योतिश्च चित्रज्योतिश्च सत्यज्योतिश्च ज्योतिष्माँश्च शुक्रश्चात्यंहा ऋतपाश्चेश्वरोऽस्ति, तथा यूयं भवत ॥८० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेह विद्युत्सूर्यादीन् प्रभाकरान् शुद्धिकरान् पदार्थान् निर्मायेश्वरेण जगच्छोध्यते, तथैव शुचिसत्यविद्योपदेशक्रियाभिर्मनुष्यादयो विद्वद्भिः शोधनीयाः। अत्रानेकेषां चकाराणां पाठात् सर्वेषामुपरि प्रीत्यादयोऽपि विधेयाः ॥८० ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्याप्रमाणे ईश्वराने या जगात विद्युत किंवा सूर्यरूपाने प्रकाश देणारे पदार्थ व शुद्धी करणारे पदार्थ निर्माण करून जग शुद्ध केलेले आहे त्याप्रमाणेच विद्वानांनी सत्य व विद्या यांचा उपदेश करून माणसांना शुद्ध करावे. या मंत्रात अनेक चकार आलेले आहेत. त्यावरून हे ज्ञात होते की, सर्वांवर प्रेम करण्याची भावना पण असली पाहिजे.