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अग्ने॑ पावक रो॒चिषा॑ म॒न्द्रया॑ देव जि॒ह्वया॑। आ दे॒वान् व॑क्षि॒ यक्षि॑ च ॥८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। पा॒व॒क॒। रो॒चिषा॑। म॒न्द्रया॑। दे॒व॒। जि॒ह्वया॑। आ। दे॒वान्। व॒क्षि॒। यक्षि॑। च॒ ॥८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:8


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

आप्त विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पावक) मनुष्यों के हृदयों को शुद्ध करनेवाले (देव) सुन्दर (अग्ने) विद्या का प्रकाश वा उपदेश करनेहारे पुरुष ! आप (मन्द्रया) आनन्द को सिद्ध करनेहारी (जिह्वया) सत्य प्रिय वाणी वा (रोचिषा) प्रकाश से (देवान्) विद्वान् वा दिव्य गुणों को (आ, वक्षि) उपदेश करते (च) और (यक्षि) समागम करते हो ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - जैसे सूर्य अपने प्रकाश से सब जगत् को प्रसन्न करता है, वैसे आप्त उपदेशक विद्वान् सब प्राणियों को प्रसन्न करें ॥८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

आप्तैर्विद्वद्भिः किं कार्य्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अग्ने) विद्याप्रकाशकोपदेशक (पावक) जनान्तःकरणशोधक ! (रोचिषा) प्रकाशेन (मन्द्रया) आनन्दसाधिकया (देव) कमनीय (जिह्वया) सत्यप्रियया वाचा (आ) (देवान्) विदुषो दिव्यगुणान् वा (वक्षि) उपदिशसि (यक्षि) संगच्छसे। अत्र बहुलं छन्दसि [अष्टा०२.४.७३] इति शपो लुक् (च) ॥८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे पावक देवाग्ने ! त्वं मन्द्रया जिह्वया रोचिषा देवानावक्षि यक्षि च ॥८ ॥
भावार्थभाषाः - यथा सूर्यः स्वप्रकाशेन सर्वं जगद् रोचयति, तथैवाप्तोपदेशकाः सर्वाञ्जनान् प्रीणीयुः ॥८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसा सूर्य आपल्या प्रकाशाने सर्व जगाला प्रसन्न करतो तसे आप्त, उपदेशक व विद्वान यांनी सर्व प्राण्यांना प्रसन्न करावे.