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अग्ने॑ सहस्राक्ष शतमूर्द्धञ्छ॒तं ते॑ प्रा॒णाः स॒हस्रं॑ व्या॒नाः। त्वꣳ सा॑ह॒स्रस्य॑ रा॒यऽई॑शिषे॒ तस्मै॑ ते विधेम॒ वाजा॑य॒ स्वाहा॑ ॥७१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। स॒ह॒स्रा॒क्षेति॑ सहस्रऽअक्ष। श॒त॒मू॒र्द्ध॒न्निति॑ शतऽमूर्धन्। श॒तम्। ते॒। प्रा॒णाः। स॒हस्र॑म्। व्या॒ना इति॑ विऽआ॒नाः। त्वम्। सा॒ह॒स्रस्य॑। रा॒यः। ई॒शि॒षे॒। तस्मै॑। ते॒। वि॒धे॒म॒। वाजा॑य। स्वाहा॑ ॥७१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:71


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर योगी के कर्मों के फलों का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सहस्राक्ष) हजारों व्यवहारों में अपना विशेष ज्ञान वा (शतमूर्द्धन्) सैकड़ों प्राणियों में मस्तकवाले (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशमान योगिराज ! जिस (ते) आप के (शतम्) सैकड़ों (प्राणाः) जीवन के साधन (सहस्रम्) (व्यानाः) सब क्रियाओं के निमित्त शरीरस्थ वायु जो (त्वम्) आप (साहस्रस्य) हजारों जीव और पदार्थों का आधार जो जगत् उसके (रायः) धन के (ईशिषे) स्वामी हैं, (तस्मै) उस (वाजाय) विशेष ज्ञानवाले (ते) आप के लिये हम लोग (स्वाहा) सत्यवाणी से (विधेम) सत्कारपूर्वक व्यवहार करें ॥७१ ॥
भावार्थभाषाः - जो योगी पुरुष तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान आदि योग के साधनों से योग (धारणा, ध्यान, समाधिरूप संयम) के बल को प्राप्त हो, अनेक प्राणियों के शरीरों में प्रवेश करके, अनेक शिर, नेत्र आदि अङ्गों से देखने आदि कार्यों को कर सकता है, अनेक पदार्थों वा धनों का स्वामी भी हो सकता है, उसका हम लोगों को अवश्य सेवन करना चाहिये ॥७१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्योगिकर्मफलमुपदिश्यते ॥

अन्वय:

(अग्ने) पावक इव प्रकाशमय (सहस्राक्ष) सहस्रेष्वसंख्यातेषु व्यवहारेष्वक्षिविज्ञानं यस्य तत्सम्बुद्धौ (शतमूर्द्धन्) शतेष्वसंख्यातेषु मूर्द्धा मस्तकं यस्य तत्सम्बुद्धौ (शतम्) असंख्याताः (ते) तव (प्राणाः) जीवसाधनाः (सहस्रम्) असंख्याः (व्यानाः) चेष्टानिमित्ताः सर्वशरीरस्था वायवः (त्वम्) (साहस्रस्य) सहस्राणामसंख्यातानामिदमधिकरणं जगत् तस्य (रायः) धनस्य (ईशिषे) ईशोऽसि (तस्मै) (ते) तुभ्यम् (विधेम) परिचरेम (वाजाय) विज्ञानवते (स्वाहा) सत्यया वाचा ॥७१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सहस्राक्ष शतमूर्द्धन्नग्ने योगिराज ! यस्य ते शतं प्राणाः सहस्रं व्यानाः सन्ति, यस्त्वं साहस्रस्य राय ईशिषे, तस्मै वाजाय ते वयं स्वाहा विधेम ॥७१ ॥
भावार्थभाषाः - यो योगी तप-आदिसाधनैर्योगबलं प्राप्यासंख्यप्राणिशरीराणि प्रविश्यानेकनेत्रादिभिरङ्गैर्दर्शनादिकार्याणि कर्त्तुं शक्नोति, अनेकेषां पदार्थानां धनानां च स्वामी भवति, सोऽस्माभिरवश्यं परिचरणीयः ॥७१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो योगी पुरुष तप, स्वाध्याय व ईश्वर प्रणिधान (धारणा, ध्यान, समाधिरूप, संयम) इत्यादी योगाच्या साधनांनी बल प्राप्त करून घेतो व अनेक प्राण्यांच्या शरीरात प्रवेश करून अनेक मस्तके, नेत्र इत्यादी अवयवांनी पाहण्याची क्रिया करू शकतो. अनेक पदार्थांचा किंवा धनाचा स्वामीही होऊ शकतो त्याचे आपण अवश्य अनुसरण केले पाहिजे.