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अ॒पामि॒दं न्यय॑नꣳ समु॒द्रस्य॑ नि॒वेश॑नम्। अ॒न्याँस्ते॑ऽअ॒स्मत्त॑पन्तु हे॒तयः॑ पाव॒कोऽअ॒स्मभ्य॑ꣳ शि॒वो भ॑व ॥७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒पाम्। इ॒दम्। न्यय॑न॒मिति॑ नि॒ऽअय॑नम्। स॒मु॒द्रस्य॑। नि॒वेश॑न॒मिति॑ नि॒ऽवेश॑नम्। अ॒न्यान्। ते॒। अ॒स्मत्। त॒प॒न्तु॒। हे॒तयः॑। पा॒व॒कः। अ॒स्मभ्य॑म्। शि॒वः। भ॒व॒ ॥७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:7


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

गृहस्थ को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् पुरुष ! जो (इदम्) यह आकाश (अपाम्) जलों वा प्राणों का (न्ययनम्) निश्चित स्थान है, उस आकाशस्थ (समुद्रस्य) समुद्र की (निवेशनम्) स्थिति के तुल्य गृहाश्रम को प्राप्त होके (पावकः) पवित्र कर्म करनेहारे होते हुए आप (अस्मभ्यम्) हमारे लिये (शिवः) मङ्गलकारी (भव) हूजिये, (ते) आपके (हेतयः) वज्र वा उन्नति (अस्मत्) हम लोगों से (अन्यान्) अन्य दुष्टों को (तपन्तु) दुःखी करें ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्य लोग जैसे जलों का आधार समुद्र, सागर का आधार भूमि, उसका आधार आकाश है, वैसे गृहस्थी के पदार्थों के आधार घर को बना और मङ्गलरूप आचरण करके श्रेष्ठों की रक्षा तथा डाकुओं को पीड़ा दिया करें ॥७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

गृहस्थेन किं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(अपाम्) जलानां प्राणानां वा (इदम्) अन्तरिक्षम् (न्ययनम्) निश्चितमयनं स्थानम् (समुद्रस्य) सागरस्य (निवेशनम्) निविशन्ति यस्मिंस्तत् (अन्यान्) (ते) तव (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (तपन्तु) दुःखयन्तु (हेतयः) वज्रा वृद्धयो वा (पावकः) पवित्रकारी (अस्मभ्यम्) (शिवः) सुखप्रदः (भव) ॥७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! यदिदमपां न्ययनमस्ति, तस्य समुद्रस्य निवेशनमिव गृहाश्रमं प्राप्य पावकः संस्त्वमस्मभ्यं शिवो भव, ते हेतयोऽस्मदन्यांस्तपन्तु ॥७ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्या यथाऽपामाधारः सागरः समुद्रस्याधिष्ठानं भूमिर्भूमेरधिष्ठानमन्तरिक्षं तथा गार्हपत्यपदार्थानामाधारं गृहं निर्माय मङ्गलमाचर्य श्रेष्ठपालनं दस्युताडनञ्च कुर्वन्तु ॥७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. ज्याप्रमाणे जलाचा आधार समुद्र, समुद्राचा आधार भूमी, भूमीचा आधार आकाश असते त्याप्रमाणे माणसांनी गृहस्थाश्रमातील सर्व वस्तू ज्याच्या आश्रयाने टिकतात असे घर बांधून उत्तम आचरण करावे व श्रेष्ठांचे रक्षण आणि दुष्टांचे दमन कावे.