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स्व॒र्यन्तो॒ नापे॑क्षन्त॒ऽआ द्या रो॑हन्ति॒ रोद॑सी। य॒ज्ञं ये वि॒श्वतो॑धार॒ꣳ सुवि॑द्वासो वितेनि॒रे ॥६८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्वः॑। यन्तः॑। न। अप॑। ई॒क्ष॒न्ते॒। आ। द्याम्। रो॒ह॒न्ति॒। रोद॑सी॒ इति॒ रोद॑सी। य॒ज्ञम्। ये। वि॒श्वतो॑धार॒मिति॑ वि॒श्वतः॑ऽधारम्। सुवि॑द्वास॒ इति॒ सुवि॑द्वासः। वि॒ते॒नि॒र इति॑ विऽतेनि॒रे ॥६८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:68


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (सुविद्वांसः) अच्छे पण्डित योगी जन (यन्तः) योगाभ्यास के पूर्ण नियम करते हुओं के (न) समान (स्वः) अत्यन्त सुख की (अप, ईक्षन्ते) अपेक्षा करते हैं वा (रोदसी) आकाश और पृथिवी को (आ, रोहन्ति) चढ़ जाते अर्थात् लोकान्तरों में इच्छापूर्वक चले जाते वा (द्याम्) प्रकाशमय योगविद्या और (विश्वतोधारम्) सब ओर से सुशिक्षायुक्त वाणी हैं, जिसमें (यज्ञम्) प्राप्त करने योग्य उस यज्ञादि कर्म का (वितेनिरे) विस्तार करते हैं, वे अविनाशी सुख को प्राप्त होते हैं ॥६८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे सारथि घोड़ों को अच्छे प्रकार सिखा और अभीष्ट मार्ग में चला कर सुख से अभीष्ट स्थान को शीघ्र जाता है, वैसे ही अच्छे विद्वान् योगी जन जितेन्द्रिय होकर नियम से अपने को अभीष्ट परमात्मा को पाकर आनन्द का विस्तार करते हैं ॥६८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(स्वः) सुखम् (यन्तः) उपयन्तः (न) इव (अप) (ईक्षन्ते) समालोकन्ते (आ) समन्तात् (द्याम्) प्रकाशमयी योगविद्याम् (रोहन्ति) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (यज्ञम्) संगन्तव्यम् (ये) (विश्वतोधारम्) विश्वतः सर्वतो धाराः सुशिक्षिता वाचो यस्मिंस्तम् (सुविद्वांसः) शोभनाश्च ते योगिनः (वितेनिरे) विस्तृतं कुर्वन्ति ॥६८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये सुविद्वांसो यन्तो न स्वरपेक्षन्ते रोदसी आरोहन्ति, द्यां विश्वतोधारं यज्ञं वितेनिरे, तेऽक्षयं सुखं लभन्ते ॥६८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा सारथिरश्वान् सुशिक्ष्याभीष्टे मार्गे चालयित्वा सुखेनाभीष्टं स्थानं सद्यो गच्छति, तथैव शोभना विद्वांसो योगिनो जितेन्द्रिया भूत्वा संयमेन स्वेष्टं परमात्मानं प्राप्यानन्दं विस्तारयन्ति ॥६८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जसा सारथी घोड्यांना चांगल्या प्रकारे प्रशिक्षित करून योग्य मार्गाने योग्य स्थानी तत्काळ पोहोचतो तसे विद्वान नियमबद्ध योगी जितेंद्रिय बनून परमेश्वराची प्राप्ती करून घेतात व आनंद वाढवितात.