वांछित मन्त्र चुनें

समि॑द्धेऽअ॒ग्नावधि॑ मामहा॒नऽउ॒क्थप॑त्र॒ऽईड्यो॑ गृभी॒तः। त॒प्तं घ॒र्म्मं प॑रि॒गृह्या॑यजन्तो॒र्जा यद्य॒ज्ञमय॑जन्त दे॒वाः ॥५५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

समि॑द्ध॒ इति॒ सम्ऽइ॑द्धे। अ॒ग्नौ। अधि॑। मा॒म॒हा॒नः। म॒म॒हा॒न इति॑ ममहा॒नः। उ॒क्थप॑त्र॒ इत्यु॒क्थऽप॑त्रः। ईड्यः॑। गृ॒भी॒तः। त॒प्तम्। घ॒र्म्मम्। प॒रि॒गृह्येति॑ परि॒ऽगृह्य॑। अ॒य॒ज॒न्त॒। ऊ॒र्जा। यत्। य॒ज्ञम्। अय॑जन्त। दे॒वाः ॥५५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:55


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

यज्ञ कैसे करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग जैसे (देवाः) विद्वान् जन (समिद्धे) अच्छे जलते हुए (अग्नौ) अग्नि में (यत्) जिस (यज्ञम्) अग्निहोत्र आदि यज्ञ को (अयजन्त) करते हैं, वैसे जो (अधि, मामहानः) अधिक और अत्यन्त सत्कार करने योग्य (उक्थपत्रः) जिसके कहने योग्य विद्यायुक्त वेद के स्तोत्र हैं, (ईड्यः) जो स्तुति करने तथा चाहने योग्य वा (गृभीतः) जिसको सज्जनों ने ग्रहण किया है, उस (तप्तम्) तापयुक्त (घर्मम्) अग्निहोत्र आदि यज्ञ को (ऊर्जा) बल से (परिगृह्य) ग्रहण करके (अयजन्त) किया करो ॥५५ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि संसार के उपकार के लिये जैसे विद्वान् लोग अग्निहोत्र यज्ञ का आचरण करते हैं, वैसे अनुष्ठान किया करें ॥५५ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

यज्ञः कथं कर्त्तव्य इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(समिद्धे) सम्यक् प्रदीप्ते (अग्नौ) पावके (अधि) (मामहानः) अतिशयेन महान् पूजनीयः (उक्थपत्रः) उक्थानि वक्तुं योग्यानि वेदस्तोत्राणि पत्राणि विद्यागमकानि यस्य सः (ईड्यः) ईडितुं स्तोतुमध्येषितुं योग्यः (गृभीतः) गृहीतः (तप्तम्) तापान्वितम् (घर्मम्) अग्निहोत्रादिकं यज्ञम्। घर्म इति यज्ञनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.१७) (परिगृह्य) सर्वतो गृहीत्वा (अयजन्त) यजन्तु (ऊर्जा) बलेन (यत्) यम् (यज्ञम्) अग्निहोत्रादिकम् (अयजन्त) यजन्ते (देवाः) विद्वांसः ॥५५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं यथा देवा समिद्धेऽग्नौ यद्यं यज्ञमयजन्त, तथा योऽधि मामहान उक्थपत्र ईड्यो गृभीतोऽस्ति, तं तप्तं घर्ममूर्जा परिगृह्यायजन्त ॥५५ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्जगदुपकाराय यथा विद्वांसोऽग्निहोत्रादिकं यज्ञमनुतिष्ठन्ति, तथाऽयमनुष्ठातव्यः ॥५५ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जगाच्या उपकारासाठी जसे विद्वान लोक अग्निहोत्र इत्यादी यज्ञ करतात तसे सर्व माणसांनी अनुष्ठान करावे.