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पञ्च॒ दिशो॒ दैवी॑र्य॒ज्ञम॑वन्तु दे॒वीरपाम॑तिं दुर्म॒तिं बाध॑मानाः। रा॒यस्पो॑षे य॒ज्ञप॑तिमा॒भज॑न्ती रा॒यस्पोषे॒ऽअधि॑ य॒ज्ञोऽअ॑स्थात् ॥५४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पञ्च॑। दिशः॑। दैवीः॑। य॒ज्ञम्। अ॒व॒न्तु॒। दे॒वीः। अप॑। अम॑तिम्। दु॒र्म॒तिमिति॑ दुःऽम॒तिम्। बाध॑मानाः। रा॒यः। पोषे॑। य॒ज्ञप॑ति॒मिति॑ य॒ज्ञऽप॑तिम्। आ॒भज॑न्ती॒रित्या॒ऽभज॑न्तीः। रा॒यः। पोषे॑। अधि॑। य॒ज्ञः। अ॒स्था॒त् ॥५४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:54


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब स्त्री-पुरुष के कृत्य को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अप, अमतिम्) अत्यन्त अज्ञान और (दुर्मतिम्) दुष्ट बुद्धि को (बाधमानाः) अलग करती हुर्इं (दैवीः) विद्वानों की ये (देवीः) दिव्य गुणवाली पण्डिता ब्रह्मचारिणी स्त्री (पञ्च, दिशः) पूर्व आदि चार और एक मध्यस्थ पाँच दिशाओं के तुल्य अलग-अलग कामों में बढ़ी हुई (रायः, पोषे) धन की पुष्टि करने के निमित्त (यज्ञपतिम्) गृहकृत्य वा राज्यपालन करनेवाले अपने स्वामी को (आभजन्तीः) सब प्रकार सेवन करती हुई (यज्ञम्) संगति करने योग्य गृहाश्रम को (अवन्तु) चाहें। जिससे यह (यज्ञः) गृहाश्रमः (रायः, पोषे) धन की पुष्टाई में (अधि, अस्थात्) अधिकता से स्थिर हो ॥५४ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में लुप्तोपमालङ्कार है। जिस गृहाश्रम में धार्मिक विद्वान् और प्रशंसायुक्त पण्डिता स्त्री होती हैं, वहाँ दुष्ट काम नहीं होते। जो सब दिशाओं में प्रशंसित प्रजा होवें तो राजा के समीप औरों से अधिक ऐश्वर्य्य होवे ॥५४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ स्त्रीपुरुषकृत्यमाह ॥

अन्वय:

(पञ्च) पूर्वादिचतस्रो मध्यस्था चैका (दिशः) आशाः (दैवीः) देवानामिमाः (यज्ञम्) सङ्गन्तव्यं सत्कर्त्तव्यं वा गृहाश्रमम् (अवन्तु) कामयन्ताम् (देवीः) दिव्या विदुष्यो ब्रह्मचारिण्यः स्त्रियः (अप) (अमतिम्) अज्ञानम् (दुर्मतिम्) दुष्टां प्रज्ञाम् (बाधमानाः) निस्सारयन्त्यः (रायः) धनस्य (पोषे) पोषणे (यज्ञपतिम्) राज्यपालकम् (आभजन्तीः) समन्तात् सेवमानाः (रायः) श्रियः (पोषे) पुष्टौ (अधि) (यज्ञः) गृहाश्रमः (अस्थात्) तिष्ठेत् ॥५४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - अपामतिं दुर्मतिं बाधमाना दैवीर्देवीः पञ्च दिश इव विस्तृता रायस्पोषे यज्ञपतिं स्वामिनामाभजन्ती- र्यज्ञमवन्तु यतोऽयं यज्ञो रायस्पोषेऽध्यस्थादधितिष्ठेत् ॥५४ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र लुप्तोपमालङ्कारः। यत्र गृहाश्रमे धार्मिका विद्वांसः प्रशंसिता विदुष्यः स्त्रियश्च सन्ति, तत्र दुर्व्यसनानि न जायन्ते। यदि सर्वासु दिक्षु प्रशंसिताः प्रजा भवेयुस्तर्हि राज्ञः समीपेऽन्येभ्योऽधिकैश्वर्य्यं स्यात् ॥५४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात लुप्तोपमालंकार आहे. गृहस्थाश्रमात धार्मिक, विद्वान व प्रशंसा करण्यायोग्य विदुषी स्त्रिया जेथे असतात तेथे वाईट कर्म होत नाही. दश दिशांनी प्रशंसित अशी प्रजा असेल तर त्या राजाजवळ इतरांपेक्षा जास्त ऐश्वर्य असते.