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यस्य॑ कु॒र्मो गृ॒हे ह॒विस्तम॑ग्ने वर्द्धया॒ त्वम्। तस्मै॑ दे॒वाऽअधि॑ब्रुवन्न॒यं च॒ ब्रह्म॑ण॒स्पतिः॑ ॥५२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यस्य॑। कु॒र्मः। गृ॒हे। ह॒विः। तम्। अ॒ग्ने॒। व॒र्द्ध॒य॒। त्वम्। तस्मै॑। दे॒वाः। अधि॑। ब्रु॒व॒न्। अ॒यम्। च॒। ब्रह्म॑णः। पतिः॑ ॥५२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:52


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पुरोहित ऋत्विज् और यजमान के कृत्य को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् पुरोहित ! हम लोग (यस्य) जिस राजा के (गृहे) घर में (हविः) होम (कुर्मः) करें, (तम्) उसको (त्वम्) तू (वर्द्धय) बढ़ा अर्थात् उत्साह दे तथा (देवाः) दिव्य गुणवाले ऋत्विज् लोग (तस्मै) उसको (अधि, ब्रुवन्) अधिक उपदेश करें (च) और (अयम्) यह (ब्रह्मणः) वेदों का (पतिः) पालन करनेहारा यजमान भी उन को शिक्षा देवे ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - पुरोहित का वह काम है कि जिससे यजमान की उन्नति हो और जो, जिसका, जितना, जैसा काम करे, उसको उसी ढंग उतना ही नियम किया हुआ मासिक धन देना चाहिये। सब विद्वान् जन सब के प्रति सत्य का उपदेश करें और राजा भी सत्योपदेश करे ॥५२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ पुरोहितर्त्विग्यजमानकृत्यमाह ॥

अन्वय:

(यस्य) राज्ञः (कुर्मः) सम्पादयामः (गृहे) (हविः) होमम् (तम्) (अग्ने) विद्वन् पुरोहित (वर्द्धय) अत्र अन्येषामपि० [अष्टा०६.३.१३७] इति दीर्घः (त्वम्) (तस्मै) तं यजमानम्। अत्र व्यत्ययेन चतुर्थी (देवाः) दिव्यगुणा ऋत्विजः (अधि) (ब्रुवन्) अधिकं ब्रुवन्तु। लेट्प्रयोगोऽयम्। (अयम्) (च) (ब्रह्मणः) वेदस्य (पतिः) पालको यजमानः ॥५२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! वयं यस्य गृहे हविष्कुर्मस्तं त्वं वर्धय, देवास्तस्मा अधि ब्रुवन्। अयं ब्रह्मणस्पतिश्च तानधिब्रवीतु ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - पुरोहितस्य तत् कर्मास्ति यतो यजमानस्योन्नतिस्स्याद्, यो यस्य यादृशं यावच्च कर्म कुर्यात्, तस्मै तादृशं तावदेव मासिकं वेतनं देयम्। सर्वे विद्वांसः सर्वान् प्रति सत्युमपदिशेयू राजा च ॥५२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - यजमानाची उन्नती होईल असे कार्य पुरोहिताने करावे. जो आपले काम जसे करील त्याला त्याच नियमानुसार मासिक धन द्यावे. सर्व विद्वान लोकांनी सर्वांना सत्याचा उपदेश करावा व राजानेही सत्योपदेश करावा.