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उदे॑नमुत्त॒रां न॒याग्ने॑ घृतेनाहुत। रा॒यस्पोषे॑ण॒ सꣳसृ॑ज प्र॒जया॑ च ब॒हुं कृ॑धि ॥५० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

उत्। ए॒न॒म्। उ॒त्त॒रामित्यु॑त्ऽत॒राम्। न॒य॒। अग्ने॑। घृ॒ते॒न॒। आ॒हु॒तेत्या॑ऽहुत। रा॒यः। पोषे॑ण। सम्। सृ॒ज॒। प्र॒जयेति॑ प्र॒ऽजया॑। च॒। ब॒हुम्। कृ॒धि॒ ॥५० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:50


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (घृतेन) घृत से (आहुत) तृप्ति को प्राप्त हुए (अग्ने) प्रकाशयुक्त सेनापति तू (एनम्) इस जीतनेवाले वीर को (उत्तराम्) जिससे उत्तमता से संग्राम को तरें, विजय को प्राप्त हुई उस सेना को (उत्, नय) उत्तम अधिकार में पहुँचा (रायः, पोषेण) राजलक्ष्मी की पुष्टि से (सम्, सृज) अच्छे प्रकार युक्त कर (च) और (प्रजया) बहुत सन्तानों से (बहुम्) अधिकता को प्राप्त (कृधि) कर ॥५० ॥
भावार्थभाषाः - जो सेना का अधिकारी वा भृत्य धर्मयुक्त युद्ध से दुष्टों को जीते, उसका सभा, सेना के पति धनादिकों से बहुत प्रकार सत्कार करें ॥५० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(उत्) (एनम्) विजेतारम् (उत्तराम्) उत्कृष्टतया तरन्ति यया सेनया तां प्राप्तिविजयाम् (नय) (अग्ने) प्रकाशमय (घृतेन) आज्येन (आहुत) तृप्तिं प्राप्त (रायः) राज्यश्रियः (पोषेण) पोषेणेन (सम्) सम्यक् (सृज) योजय (प्रजया) बहुसन्तानैः (च) (बहुम्) अधिकं कर्म (कृधि) कुरु ॥५० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे घृतेनाहुताग्ने सेनापते ! त्वमेनमुत्तरामुन्नय रायस्पोषेण संसृज प्रजया च बहुं कृधि ॥५० ॥
भावार्थभाषाः - यः सेनाधिकारी भृत्यो वा धर्म्येण युद्धेन दुष्टान् विजयेत, तं सभासेनापतयो धनादिना बहुधा सत्कुर्युः ॥५० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो सेनेचा अधिकारी किंवा सैनिक धर्मयुद्धाने दुष्टांना जिंकतो त्याचा सभा व सेनापती यांनी धन इत्यादीद्वारे चांगल्या प्रकारे सन्मान करावा.