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मर्मा॑णि ते॒ वर्म॑णा छादयामि॒ सोम॑स्त्वा॒ राजा॒मृते॒नानु॑ वस्ताम्। उ॒रोर्वरी॑यो॒ वरु॑णस्ते कृणोतु॒ जय॑न्तं॒ त्वानु॑ दे॒वा म॑दन्तु ॥४९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मर्मा॑णि। ते॒। वर्म॑णा। छा॒द॒या॒मि॒। सोमः॑। त्वा॒। राजा॑। अ॒मृते॑न। अनु॑। व॒स्ता॒म्। उ॒रोः। वरी॑यः। वरु॑णः। ते॒। कृ॒णो॒तु॒। जय॑न्तम्। त्वा॒। अनु॑। दे॒वाः। म॒द॒न्तु॒ ॥४९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:49


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे युद्ध करानेवाले शूरवीर ! मैं (ते) तेरे (मर्माणि) मर्मस्थलों अर्थात् जो ताड़ना किये हुए शीघ्र मरण उत्पन्न करनेवाले शरीर के अङ्ग हैं, उनको (वर्मणा) देह की रक्षा करनेहारे कवच से (छादयामि) ढाँपता हूँ। यह (सोमः) शान्ति आदि गुणों से युक्त और (राजा) विद्या, न्याय तथा विनय आदि गुणों से प्रकाशमान राजा (अमृतेन) समस्त रोगों के दूर करनेवाली अमृतरूप ओषधि से (त्वा) तुझ को (अनु, वस्ताम्) पीछे ढाँपे (वरुणः) सबसे उत्तम गुणोंवाला राजा (ते) तेरे (उरोः) बहुत गुण और ऐश्वर्य से भी (वरीयः) अत्यन्त ऐश्वर्य को (कृणोतु) करे तथा (जयन्तम्) दुष्टों को पराजित करते हुए (त्वा) तुझे (देवाः) विद्वान् लोग (अनु, मदन्तु) अनुमोदित करें अर्थात् उत्साह देवें ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - सेनापति आदि को चाहिये कि सब युद्धकर्त्ताओं के शरीर आदि की रक्षा सब ओर से करके इन को निरन्तर उत्साहित और अनुमोदित करें, जिससे निश्चय करके सब से विजय को पावें ॥४९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(मर्माणि) यानि ताडितानि सन्ति सद्यो मरणजनकान्यङ्गानि (ते) तव (वर्मणा) देहरक्षकेन (छादयामि) अपवृणोमि (सोमः) सोम्यगुणैश्वर्यसम्पन्नः (त्वा) त्वाम् (राजा) विद्यान्यायविनयादिभिः प्रकाशमानः (अमृतेन) सर्वरोगनिवारकेणामृतात्मकेनौषधेन (अनु) पश्चात् (वस्ताम्) आच्छादयताम् (उरोः) बहुगुणैश्वर्यात् (वरीयः) अतिशयितं बह्वैश्वर्यम् (वरुणः) सर्वत उत्कृष्टः (ते) तुभ्यम् (कृणोतु) (जयन्तम्) दुष्टान् पराजयन्तम् (त्वा) त्वाम् (अनु) (देवाः) विद्वांसः (मदन्तु) उत्साहयन्तु ॥४९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे योद्धः शूरवीर ! अहं ते मर्माणि वर्मणा छादयामि। अयं सोमो राजाऽमृतेन त्वानुवस्ताम्। वरुणस्त उरोर्वरीयः कृणोतु, जयन्तं त्वा देवा अनु मदन्तु ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - सेनापत्यादिभिः सर्वेषां योद्धॄणां शरीरादिरक्षणं सर्वतः कृत्वैते सततं प्रोत्साहनीया अनुमोदनीयाश्च, यतो विश्वतो विजयं लभेरन् ॥४९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सेनापती इत्यादींनी सर्व युद्धवीरांच्या शरीरांचे रक्षण करावे व त्यांना सदैव उत्साहित करावे. त्यांना पािEठबा द्यावा. त्यामुळे ते निश्चितपणे विजय प्राप्त करतील.