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यत्र॑ बा॒णाः स॒म्पत॑न्ति कुमा॒रा वि॑शि॒खाऽइ॑व। तन्न॒ऽइन्द्रो॒ बृह॒स्पति॒रदि॑तिः॒ शर्म॑ यच्छतु वि॒श्वाहा॒ शर्म॑ यच्छतु ॥४८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यत्र॑। बा॒णाः। सं॒पत॒न्तीति॑ स॒म्ऽपत॑न्ति। कु॒मा॒राः। वि॒शि॒खाऽइ॒वेति॑ विशि॒खाःऽइ॑व। तत्। नः॒। इन्द्रः॑। बृह॒स्पतिः॑। अदि॑तिः। शर्म्म॑। य॒च्छ॒तु॒। वि॒श्वाहा॑। शर्म्म॑। य॒च्छ॒तु॒ ॥४८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:48


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्र) जिस संग्राम में (विशिखा इव) विना चोटी के वा बहुत चोटियोंवाले (कुमाराः) बालकों के समान (बाणाः) बाण आदि शस्त्र अस्त्रों के समूह (संपतन्ति) अच्छे प्रकार गिरते हैं, (तत्) वहाँ (बृहस्पतिः) बड़ी सभा वा सेना का पालनेवाला (इन्द्रः) सेनापति (शर्म) आश्रय वा सुख के (यच्छतु) देवे और (अदितिः) नित्य सभासदों से शोभायमान सभा (विश्वाहा) सब दिन (नः) हम लोगों के लिये (शर्म) सुख सिद्ध करनेवाले घर को (यच्छतु) देवे ॥४८ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे बालक इधर-उधर दौड़ते हैं, वैसे युद्ध के समय में योद्धा लोग भी चेष्टा करें। जो युद्ध में घायल, क्षीण, थके, पसीजे, छिदे, भिदे, कटे, फटे अङ्गवाले मूर्छित हों, उनको युद्धभूमि से शीघ्र उठा सुखालय (शफाखाने) में पहुँचा औषध पट्टी कर स्वस्थ करें और जो मर जावें, उनको विधि से दाह दें, राजजन उनके माता-पिता, स्त्री और बालकों की सदा रक्षा करें ॥४८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(यत्र) यस्मिन् संग्रामे (बाणाः) ये बणन्ति शब्दायन्ते ते शस्त्रास्त्रसमूहाः (संपतन्ति) (कुमाराः) अतिचपला वेगवन्तो बालकाः (विशिखा इव) यथा विगतशिखा विविधशिखा वा (तत्) तत्र (नः) अस्मभ्यम् (इन्द्रः) सेनापतिः (बृहस्पतिः) बृहत्याः सभायाः सेनाया वा पालकः (अदितिः) अखण्डिता सभासदलङ्कृता सभा (शर्म) शरणं सुखम् (यच्छतु) (विश्वाहा) सर्वाण्यहानि दिनानि (शर्म) सुखसाधकं गृहम् (यच्छतु) ददातु ॥४८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - यत्र संग्रामे विशिखा कुमारा इव बाणाः संपतन्ति, तद् बृहस्पतिरिन्द्रः शर्म यच्छत्वदितिश्च विश्वाहा नः शर्म यच्छतु ॥४८ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा बालका इतस्ततो धावन्ति, तथा युद्धसमये योद्धारोऽपि चेष्टन्ताम्। ये युद्धे क्षताः क्षीणाः श्रान्ताः क्लान्ताश्छिन्नभिन्नाङ्गा मूर्छिताश्च भवेयुस्तान् युद्धभूमेः सद्य उत्थाप्य सुखालयं नीत्वौषधादीनि कृत्वा स्वस्थान् कुर्युः। ये च म्रियेरँस्तान् विधिवद् दहेयुः। राजजनास्तेषां मातृपितृस्त्रीबालकादीनां सदा रक्षां कुर्युः ॥४८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. लहान मुले जशी इकडे तिकडे पळतात तसे योद्ध्यांनी लढाईच्या वेळी वर्तन करावे. जे युद्धात जखमी, क्षीण, थकलेले, घामेजलेले असतील व ज्यांच्या शरीरांना जखमा झालेल्या असतील व ज्यांचे अवयव तुटलेले मोडलेले असतील, तसेच जे मूर्च्छित असतील त्यांना युद्धभूमीवरून तत्काळ उपचार केंद्रात पोहोचवावे व औषधी देऊन मलमपट्टी करावी. जे मृत्यू पावले असतील त्यांचा दाहसंस्कार करावा व राजाने त्यांच्या आई-वडिलांचे व बालकांचे नेहमी रक्षण करावे.