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अ॒भि गो॒त्राणि॒ सह॑सा॒ गाह॑मानोऽद॒यो वी॒रः श॒तम॑न्यु॒रिन्द्रः॑। दु॒श्च्य॒व॒नः पृ॑तना॒षाड॑यु॒ध्यो᳕ऽअ॒स्माक॒ꣳ सेना॑ अवतु॒ प्र यु॒त्सु ॥३९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒भि। गो॒त्राणि॑। सह॑सा। गाह॑मानः। अ॒द॒यः। वी॒रः। श॒तम॑न्यु॒रिति॑ श॒तऽम॑न्युः। इन्द्रः॑। दु॒श्च्य॒व॒न इति॑ दुःऽच्यव॒नः। पृ॒त॒ना॒ऽषाट्। अ॒यु॒ध्यः᳕। अ॒स्माक॑म्। सेनाः॑। अ॒व॒तु॒। प्र। यु॒त्स्विति॑ यु॒त्सु ॥३९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:39


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! जो (युत्सु) जिनसे अनेक पदार्थों का मेल अमेल करें, उन युद्धों में (सहसा) बल से (गोत्राणि) शत्रुओं के कुलों को (प्र, गाहमानः) अच्छे यत्न से गाहता हुआ (अदयः) निर्दय (शतमन्युः) जिसको सैकड़ों प्रकार का क्रोध विद्यमान है, (दुश्च्यवनः) जो दुःख से शत्रुओं के गिराने योग्य (पृतनाषाट्) शत्रु की सेना को सहता है, (अयुध्यः) और जो शत्रुओं के युद्ध करने योग्य नहीं है, (वीरः) तथा शत्रुओं की विदीर्ण करता है, वह (अस्माकम्) हमारी (सेनाः) सेनाओं को (अभि, अवतु) सब ओर से पाले और (इन्द्रः) सेनाधिपति हो, ऐसी आज्ञा तुम देओ ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - जो धार्मिक जनों में करुणा करनेवाला, दुष्टों में दयारहित और सब ओर से सब की रक्षा करनेवाला मनुष्य हो, वही सेना के पालने में अधिकारी करने योग्य है ॥३९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अभि) सर्वतः (गोत्राणि) शत्रुकुलानि (सहसा) बलेन (गाहमानः) विलोडनं कुर्वन् (अदयः) अविद्यमाना दया करुणा यस्य सः (वीरः) शत्रूणां दरिता (शतमन्युः) शतधा मन्युः क्रोधो यस्य सः (इन्द्रः) सेनेशः (दुश्च्यवनः) शत्रुभिर्दुःखेन च्योतुं योग्यः (पृतनाषाट्) यः पृतनां सहते (अयुध्यः) शत्रुभिर्योद्धुमयोग्यः (अस्माकम्) (सेनाः) (अवतु) रक्षतु (प्र) प्रयत्नेन (युत्सु) मिश्रितामिश्रितकरणेषु युद्धेषु ॥३९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वांसः ! यो युत्सु सहसा गोत्राणि प्रगाहमानोऽदयः शतमन्युर्दुश्च्यवनः पृतनाषाडयुध्यो वीरोऽस्माकं सेना अभ्यवतु, स इन्द्रः सेनापतिर्भवत्वित्याज्ञापयत ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - धार्मिकेषु करुणाकरः दुष्टेषु निर्दयः सर्वाभिरक्षको नरो भवेत्, स एव सेनापालनेऽधिकर्त्तव्यः ॥३९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो धार्मिक लोकांशी दयाळूपणाने व दुष्टांशी निर्दयपणे वागतो अशा प्रकारे सर्व तऱ्हेने सर्वांचे रक्षण करणाऱ्या माणसाला सेनाधिकारी बनविणे योग्य होय.