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ये दे॒वा दे॒वेष्वधि॑ देव॒त्वमाय॒न् ये ब्रह्म॑णः पुरऽए॒तारो॑ऽअ॒स्य। येभ्यो॒ नऽऋ॒ते पव॑ते॒ धाम॒ किञ्च॒न न ते दि॒वो न पृ॑थि॒व्याऽअधि॒ स्नुषु॑ ॥१४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। दे॒वाः। दे॒वेषु॑। अधि॑। दे॒व॒त्वमिति॑ देव॒ऽत्वम्। आय॑न्। ये। ब्रह्म॑णः। पु॒र॒ऽए॒तार॒ इति॑ पुरःऽए॒तारः॑। अ॒स्य। येभ्यः॑। न। ऋ॒ते। पव॑ते। धाम॑। किम्। च॒न। न। ते। दि॒वः। न। पृ॒थि॒व्याः। अधि॑। स्नुषु॑ ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उत्तम विद्वान् लोग कैसे होते हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (देवाः) पूर्ण विद्वान् (देवेषु, अधि) विद्वानों में सब से उत्तम कक्षा में विराजमान (देवत्वम्) अपने गुण, कर्म और स्वभाव को (आयन्) प्राप्त होते हैं और (ये) जो (अस्य) इस (ब्रह्मणः) परमेश्वर को (पुरएतारः) पहिले प्राप्त होनेवाले हैं, (येभ्यः) जिनके (ऋते) विना (किम्) (चन) कोई भी (धाम) सुख का स्थान (न) नहीं (पवते) पवित्र होता (ते) वे विद्वान् लोग (न) न (दिवः) सूर्य्यलोक के प्रदेशों और (न) न (पृथिव्याः) पृथिवी के (अधि, स्नुषु) किसी भाग में अधिक वसते हैं ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - जो इस जगत् में उत्तम विद्वान् योगीराज यथार्थता से परमेश्वर को जानते हैं, वे सम्पूर्ण प्राणियों को शुद्ध करने और जीवन्मुक्तिदशा में परोपकार करते हुए विदेहमुक्ति अवस्था में न सूर्य्यलोक और न पृथिवी पर नियम से वसते हैं, किन्तु ईश्वर में स्थिर हो के अव्याहतगति से सर्वत्र विचरा करते हैं ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोत्तमा विद्वांसः कीदृशा भवन्तीत्याह ॥

अन्वय:

(ये) (देवाः) पूर्णविद्वांसः (देवेषु) विद्वत्सु (अधि) उपरिविराजमानाः (देवत्वम्) विदुषां कर्म भावं वा (आयन्) प्राप्नुवन्ति (ये) (ब्रह्मणः) परमेश्वरस्य (पुरएतारः) पूर्वं प्राप्तारः (अस्य) (येभ्यः) (न) निषेधे (ऋते) विना (पवते) पवित्रीभवति (धाम) दधति सुखानि यस्मिंस्तत् (किम्) (चन) (न) (ते) विद्वांसः (दिवः) सूर्यस्य (न) (पृथिव्याः) भूमेः (अधि) (स्नुषु) प्रान्तेषु ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये देवा देवेष्वधि देवत्वमायन्, येऽस्य ब्रह्मणः पुरएतारः सन्ति, येभ्य ऋते किं चन धाम न पवते, ते न दिवः स्नुषु न च पृथिव्या अधि स्नुष्वायन् नाधिवसन्तीति यावत् ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - येऽत्र जगति विद्वत्तमा योगाधिराजा याथातथ्येन परमेश्वरं जानन्ति, ते निखिलजनशोधकाः सन्तो जीवन्मुक्तिदशायां परोपकारमाचरन्तो विदेहमुक्तदशायां न सूर्यलोके न च पृथिव्यां नियतं वसन्ति, किन्तु ब्रह्मणि स्थित्वाऽव्याहतगत्या सर्वत्राभिविहरन्ति ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या जगात जे उत्तम विद्वान आणि योगी असतात ते यथार्थपणे परमेश्वराला जाणतात. ते संपूर्ण प्राण्यांना व स्थानांना पवित्र करून जीवनमुक्त अवस्थेमध्ये परोपकार करतात व विदेहमुक्त अवस्थेमध्ये सूर्यलोक व पृथ्वीलोकावर वस्ती करत नाहीत तर ईश्वरामध्ये स्थिर हेऊन अव्याहत गतीने सर्वत्र संचार करतात.