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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (भगवः) ऐश्वर्ययुक्त सेनापते ! (ते) तेरे (हस्ते) हाथ में (याः) जो (इषवः) बाण हैं (ताः) उन को (धन्वनः) धनुष् के (उभयोः) दोनों (आर्त्न्योः) पूर्व पर किनारों की (ज्याम्) प्रत्यञ्चा में जोड़ के शत्रुओं पर (त्वम्) तू (प्र, मुञ्च) बल के साथ छोड़ (च) और जो तेरे पर शत्रुओं ने बाण छोड़े हुए हों उन को (परा, वप) दूर कर ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - सेनापति आदि राजपुरुषों को चाहिये कि धनुष् से बाण चलाकर शत्रुओं को जीतें और शत्रुओं के फेंके हुए बाणों का निवारण करें ॥९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तदेवाह ॥
अन्वय:
(प्र) प्रकृष्टार्थे (मुञ्च) त्यज (धन्वनः) धनुषः (त्वम्) सेनेशः (उभयोः) (आर्त्न्योः) पूर्वापरयोः (ज्याम्) बाणसन्धानार्थम् (याः) (च) (ते) तव (हस्ते) करे (इषवः) बाणाः (परा) दूरे (ताः) (भगवः) ऐश्वर्ययुक्त (वप) निक्षिप ॥९ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे भगवः सेनापते ! ते तव हस्ते या इषवः सन्ति, ता धन्वन उभयोरार्त्न्योर्ज्यामनुसन्धाय शत्रूणामुपरि त्वं प्रमुञ्च याश्च स्वोपरि शत्रुभिः प्रक्षिप्तास्ताः परा वप ॥९ ॥
भावार्थभाषाः - सेनापत्यादिभिर्धनुषा प्रक्षिप्तैर्बाणैः शत्रवो विजेतव्याः शत्रुक्षिप्ताश्च निवारणीयाः ॥९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सेनापती इत्यादी राजपुरुषांनी धनुष्यबाणांनी शत्रूंना जिंकावे व शत्रूंच्या बाणांचा नाश करावा.