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ये ती॒र्थानि॑ प्र॒चर॑न्ति सृ॒काह॑स्ता निष॒ङ्गिणः॑। तेषा॑ सहस्रयोज॒नेऽव॒ धन्वा॑नि तन्मसि ॥६१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। ती॒र्थानि॑। प्र॒चर॒न्तीति॑ प्र॒ऽचर॑न्ति। सृ॒काह॑स्ता॒ इति॑ सृ॒काऽह॑स्ताः। नि॒ष॒ङ्गिणः॑। तेषा॑म्। स॒ह॒स्र॒यो॒ज॒न इति॑ सहस्रऽयोज॒ने। अव॑। धन्वा॑नि। त॒न्म॒सि॒ ॥६१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:61


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग (ये) जो (सृकाहस्ताः) हाथों में वज्र धारण किये हुए (निषङ्गिणः) प्रशंसित बाण और कोश से युक्त जनों के समान (तीर्थानि) दुःखों से पार करने हारे वेद आचार्य सत्यभाषण और ब्रह्मचर्यादि अच्छे नियम अथवा जिनसे समुद्रादिकों को पार करते हैं, उन नौका आदि तीर्थों का (प्रचरन्ति) प्रचार करते हैं (तेषाम्) उन के (सहस्रयोजने) हजार योजन के देश में (धन्वानि) शस्त्रों को (अव, तन्मसि) विस्तृत करते हैं ॥६१ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों के दो प्रकार के तीर्थ हैं, उन में पहिले तो वे जो ब्रह्मचर्य, गुरु की सेवा, वेदादि शास्त्रों का पढ़ना-पढ़ाना, सत्सङ्ग, ईश्वर की उपासना और सत्यभाषण आदि दुःखसागर से मनुष्यों को पार करते हैं और दूसरे वे जिनसे समुद्रादि जलाशयों के इस पार उस पार जाने आने को समर्थ हों ॥६१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तदेवाह ॥

अन्वय:

(ये) (तीर्थानि) यानि वेदाचार्य्यसत्यभाषणब्रह्मचर्यादिसुनियमादीन्यविद्यादुःखेभ्यस्तारयन्ति यद्वा यैः समुद्रादिभ्यस्तारयन्ति तानि (प्रचरन्ति) (सृकाहस्ताः) सृका वज्राणि हस्तेषु येषां ते। सृक इति वज्रनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.२०) (निषङ्गिणः) प्रशस्तबाणकोशयुक्ताः। तेषामिति पूर्ववत् ॥६१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - वयं ये सृकाहस्ता निषङ्गिण इव तीर्थानि प्रचरन्ति तेषां सहस्रयोजने धन्वान्यव तन्मसि ॥६१ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्याणां द्विविधानि तीर्थानि वर्त्तन्ते तेष्वाद्यानि ब्रह्मचर्याचार्यसेवावेदाद्यध्ययनाध्यापन-सत्सङ्गेश्वरोपासनासत्यभाषणादीनि दुःखसागराज्जनान् पारं नयन्ति। अपराणि यैः समुद्रादिजलाशयेभ्यः पारावारं गन्तुं शक्याश्चेति ॥६१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी हे जाणावे की, दोन प्रकारची तीर्थे असतात. त्यापैकी पहिले ब्रह्मचर्य, गुरूची सेवा, वेदादिशास्रांचे अध्ययन-अध्यापन, सत्संग, ईश्वराची उपासना व सत्यभाषण. हे दुःखसागरातून माणसांना तारून नेतात व दुसरे तीर्थ म्हणजे (नौका वगैरे) ज्याद्वारे समुद्र इत्यादी जलाशयातून जाता येते ते.