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ये प॒थां प॑थि॒रक्ष॑यऽऐलबृ॒दाऽआ॑यु॒र्युधः॑। तेषा॑ सहस्रयोज॒नेऽव॒ धन्वा॑नि तन्मसि ॥६० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। प॒थाम्। प॒थि॒रक्ष॑य इति॑ पथि॒ऽरक्ष॑यः। ऐ॒ल॒बृ॒दाः। आ॒यु॒र्युध॒ इत्या॑युः॒ऽयुधः॑। तेषा॑म्। स॒ह॒स्र॒यो॒ज॒न इति॑ सहस्रऽयोज॒ने। अव॑। धन्वा॑नि। त॒न्म॒सि॒ ॥६० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:60


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हम लोग (ये) जो (पथाम्) मार्गों के सम्बन्धी तथा (पथिरक्षयः) मार्गों में विचरनेवाले जनों के रक्षकों के तुल्य (ऐलबृदाः) पृथिवीसम्बन्धी पदार्थों के वर्धक (आयुर्युधः) पूर्णायु वा अवस्था के साथ युद्ध करने हारे भृत्य हैं (तेषाम्) उनके (सहस्रयोजने) असंख्य योजन देश में (धन्वानि) धनुषों को (अव, तन्मसि) विस्तृत करते हैं ॥६० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि जैसे राजपुरुष दिन-रात प्रजाजनों की यथावत् रक्षा करते हैं, वैसे पृथिवी और जीवनादि की रक्षा वायु करते हैं, ऐसा जानें ॥६० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(ये) (पथाम्) मार्गाणाम् (पथिरक्षयः) ये पथिषु विचरतां जनानां रक्षयो रक्षकाः (ऐलबृदाः) इलाया पृथिव्या इमानि वस्तुजातानि ऐलानि तानि ये वर्धयन्ति ते। अत्र वर्णव्यत्ययेन धस्य दः। इगुपधलक्षणः कश्च। (आयुर्युधः) ये आयुषा सह युध्यन्ते तेषामिति पूर्ववत् ॥६० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - वयं ये पथां पथिरक्षय इव ऐलबृदा आयुर्युधो भृत्याः सन्ति, तेषां सहस्रयोजने धन्वान्यवतन्मसि ॥६० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यथा राजजना अहर्निशं प्रजाजनान् यथावद्रक्षन्ति, तथा पृथिवीं जीवनादिकं च वायवो रक्षन्तीति वेद्यम् ॥६० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे राजपुरुष दिवसा व रात्री प्रजेचे योग्य प्रकारे रक्षण करतात तसे वायू, पृथ्वी व त्यावरील जीवनाचे रक्षण करतात हे माणसांने जाणावे.