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ये भू॒ताना॒मधि॑पतयो विशि॒खासः॑ कप॒र्दिनः॑। तेषा॑ सहस्रयोज॒नेऽव॒ धन्वा॑नि तन्मसि ॥५९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। भू॒ताना॑म्। अधि॑पतय॒ इत्यधि॑ऽपतयः॒। वि॒शि॒खास॒ इति॑ विऽशि॒खासः॑। क॒प॒र्दिनः॑। तेषा॑म्। स॒ह॒स्र॒यो॒ज॒न इति॑ सहस्रऽयोज॒ने। अव॑। धन्वा॑नि। त॒न्म॒सि॒ ॥५९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:59


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य लोग पढ़ाना और उपदेश किससे ग्रहण करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (ये) जो (भूतानाम्) प्राणी तथा अप्राणियों के (अधिपतयः) रक्षक स्वामी (विशिखासः) शिखारहित संन्यासी और (कपर्दिनः) जटाधारी ब्रह्मचारी लोग हैं (तेषाम्) उनके हितार्थ (सहस्रयोजने) हजार योजन देश में हम लोग सर्वथा सर्वदा भ्रमण करते हैं और (धन्वानि) अविद्यादि दोषों के निवारणार्थ विद्यादि शस्त्रों का (अव, तन्मसि) विस्तार करते हैं, वैसे हे राजपुरुषो ! तुम लोग भी सर्वत्र भ्रमण किया करो ॥५९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को उचित है कि जो सूत्रात्मा और धनञ्जय वायु के समान संन्यासी और ब्रह्मचारी लोग सब के शरीर तथा आत्मा की पुष्टि करते हैं, उनसे पढ़ और उपदेश सुन कर सब लोग अपनी बुद्धि तथा शरीर की पुष्टि करें ॥५९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

जनैरध्यापनोपदेशौ कुतो ग्राह्यावित्याह ॥

अन्वय:

(ये) (भूतानाम्) प्राण्यप्राणिनाम् (अधिपतयः) अधिष्ठातारः पालकाः (विशिखासः) विगतशिखाः संन्यासिनः (कपर्दिनः) जटिला ब्रह्मचारिणः। तेषामिति पूर्ववत् ॥५९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा ये भूतानामधिपतयो विशिखासः कपर्दिनः संन्यासिनो ब्रह्मचारिणः सन्ति, तेषां हिताय सहस्रयोजने वयं परिभ्रमामो धन्वान्यवतन्मसि, तथा हे राजपुरुषाः ! यूयमपि पर्यटनं सदा कुरुत ॥५९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्ये सूत्रात्मधनञ्जयादिवत् परिव्राजो ब्रह्मचारिणश्च सर्वेषां शरीरात्मपोषकाः सन्ति, तदध्यापनोपदेशाभ्यां बुद्धिदेहपुष्टिः सम्पादनीया ॥५९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी हे जाणावे की, जे सन्यासी व ब्रह्मचारी, सूत्रात्मा व धनंजय वायूप्रमाणे सर्वांची शरीरे व आत्मे यांची पुष्टी करतात त्यांच्याकडून (विद्या) शिकून घेऊन व उपदेश ऐकून सर्व लोकांनी आपल्या बुद्धीची व शरीराची पुष्टी करावी.