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विकि॑रिद्र॒ विलो॑हित॒ नम॑स्तेऽअस्तु भगवः। यास्ते॑ स॒हस्र॑ꣳ हे॒तयो॒ऽन्य॑म॒स्मन्नि व॑पन्तु॒ ताः ॥५२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

विकि॑रि॒द्रेति॒ विऽकि॑रिद्र। विलो॑हि॒तेति॒ विऽलो॑हित। नमः॑। ते॒। अ॒स्तु॒। भ॒ग॒व॒ इति॑ भगऽवः। याः। ते॒। स॒हस्र॑म्। हे॒तयः॑। अन्य॑म्। अ॒स्मत्। नि। व॒प॒न्तु॒। ताः ॥५२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:52


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रजा के पुरुष राजपुरुषों के साथ कैसे वर्त्तें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (विकिरिद्र) विशेषकर सूअर के समान सोने वा उत्तम सूअर की निन्दा करनेवाले (विलोहित) विविध पदार्थों को आरूढ़ (भगवः) ऐश्वर्य्ययुक्त सभापते राजन् ! (ते) आपको (नमः) सत्कार प्राप्त (अस्तु) हो जिससे (ते) आपके (याः) जो (सहस्रम्) असंख्यात प्रकार की (हेतयः) उन्नति वा वज्रादि शस्त्र हैं, (ताः) वे (अस्मत्) हम से (अन्यम्) भिन्न दूसरे शत्रु को (निवपन्तु) निरन्तर छेदन करें ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - प्रजा के लोग राजपुरुषों से ऐसे कहें कि जो आप लोगों की उन्नति और शस्त्र-अस्त्र हैं, वे हम लोगों को सुख में स्थिर करें और इतर हमारे शत्रुओं का निवारण करें ॥५२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रजाजना राजजनैः सह कथं वर्तेरन्नित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(विकिरिद्र) विशेषेण किरिः सूकर इव द्रायति शेते विशिष्टं किरिं द्राति निन्दति वा तत्सम्बुद्धौ (विलोहित) विविधान् पदार्थानारूढस्तत्सम्बुद्धौ (नमः) सत्कारः (ते) तुभ्यम् (अस्तु) (भगवः) ऐश्वर्यसम्पन्न (याः) (ते) तव (सहस्रम्) असंख्याताः (हेतयः) वृद्धयो वज्रा वा (अन्यम्) इतरम् (अस्मत्) अस्माकं सकाशात् (नि) (वपन्तु) छिन्दन्तु (ताः) ॥५२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विकिरिद्र विलोहित भगवस्सभेश राजँस्ते नमोऽस्तु, येन ते तव याः सहस्रं हेतयः सन्ति, ता अस्मदन्यं निवपन्तु ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - प्रजाजना राजजनान् प्रत्येवमुच्युर्या युष्माकमुन्नतयः शस्त्रास्त्राणि च सन्ति, ता अस्मान् सुखे स्थापयन्त्वितरानस्मच्छत्रून् निवारयन्तु ॥५२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - प्रजेने राजपुरुषांना असे म्हणावे की, तुमच्याजवळ जी शस्त्रास्त्रे आहेत त्यामुळे आम्ही सुरक्षित व स्थिर आहोत. त्या शस्त्रास्त्रांनीच तुम्ही शत्रूंचे निवारण करा.