वांछित मन्त्र चुनें

परि॑ नो रु॒द्रस्य॑ हे॒तिर्वृ॑णक्तु॒ परि॑ त्वे॒षस्य॑ दुर्म॒तिर॑घा॒योः। अव॑ स्थि॒रा म॒घव॑द्भ्यस्तनुष्व॒ मीढ्व॑स्तो॒काय॒ तन॑याय मृड ॥५० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

परि॑। नः॒। रु॒द्रस्य॑। हे॒तिः। वृ॒ण॒क्तु॒। परि॑। त्वे॒षस्य॑। दु॒र्म॒तिरिति॑ दुःऽम॒तिः। अ॒घा॒योः। अ॒घा॒योरित्य॑घ॒ऽयोः। अव॑। स्थि॒रा। म॒घव॑द्भ्य॒ इति॑ म॒घव॑त्ऽभ्यः। त॒नु॒ष्व॒। मीढ्वः॑। तो॒काय॑। तन॑याय। मृ॒ड॒ ॥५० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:50


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजपुरुषों को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मीढ्वः) सुख वर्षाने हारे राजपुरुष ! आप जो (रुद्रस्य) सभापति राजा का (हेतिः) वज्र है, उससे (त्वेषस्य) क्रोधादिप्रज्वलित (अघायोः) अपने से दुष्टाचार करने हारे पुरुष के सम्बन्ध से (नः) हम लोगों को (परि, वृणक्तु) सब प्रकार पृथक् कीजिये। जो (दुर्मतिः) दुष्टबुद्धि है, उससे भी हम को बचाइये और जो (मघवद्भ्यः) प्रशंसित धनवालों से प्राप्त हुई (स्थिरा) स्थिर बुद्धि है, उस को (तोकाय) शीघ्र उत्पन्न हुए बालक (तनयाय) कुमार पुरुष के लिये (परि, तनुष्व) सब ओर से विस्तृत करिये और इस बुद्धि से सब को निरन्तर (अव, मृड) सुखी कीजिये ॥५० ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषों का धर्मयुक्त पुरुषार्थ वही है कि जिससे प्रजा की रक्षा और दुष्टों को मारना हो, इससे श्रेष्ठ वैद्य लोग सब को आरोग्य और स्वतन्त्रता के सुख की उन्नति करें, जिससे सब सुखी हों ॥५० ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजपुरुषैः किं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(परि) सर्वतः (नः) अस्मान् (रुद्रस्य) सभेशस्य (हेतिः) वज्रः (वृणक्तु) पृथक् करोतु (परि) (त्वेषस्य) क्रोधादिना प्रदीप्तस्य (दुर्मतिः) दुष्टबुद्धिः (अघायोः) आत्मनोऽघमिच्छोर्दुष्टाचारिणः (अव) (स्थिरा) निश्चला (मघवद्भ्यः) पूजितधनेभ्यः (तनुष्व) विस्तृणु (मीढ्वः) सुखसेचक (तोकाय) सद्यो जाताय बालकाय (तनयाय) कुमाराय (मृड) आनन्दय ॥५० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मीढ्वः ! भवान् यो रुद्रस्य हेतिस्तेन त्वेषस्याघायोः सकाशान्नः परिवृणक्तु, या दुर्मतिर्भवेत् तस्याश्चास्मान् परिवृणक्तु। या च मघवद्भ्यः प्राप्ता स्थिरा मतिरस्ति, तां तोकाय तनयाय परि तनुष्वैतया सर्वान् सततमवमृड ॥५० ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषाणां तदेव धर्म्यं सामर्थ्यं येन प्रजारक्षणं दुष्टानां हिंसनं च स्यात्, ततः सद्वैद्याः सर्वेषामारोग्यं स्वातन्त्र्यसुखोन्नतिं च कुर्युर्येन सर्वे सुखिनो भवेयुः ॥५० ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांचा पुरुषार्थ असा असावा की, त्यांनी प्रजेचे रक्षण करावे, दुष्टांचा नाश करावा, धर्मयुक्त श्रेष्ठ वैद्यांनी सर्वांचे आरोग्य व स्वातंत्र्यता सुरक्षित राहील असा प्रयत्न करावा आणि सर्वांना सुखी करावे.