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या ते॑ रुद्र शि॒वा त॒नूः शि॒वा वि॒श्वाहा॑ भेष॒जी। शि॒वा रु॒तस्य॑ भेष॒जी तया॑ नो मृड जी॒वसे॑ ॥४९ ॥

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पद पाठ

या। ते॒। रु॒द्र॒। शि॒वा। त॒नूः। शि॒वा। वि॒श्वाहा॑। भे॒ष॒जी। शि॒वा। रु॒तस्य॑। भे॒ष॒जी। तया॑। नः॒। मृ॒ड। जी॒वसे॑ ॥४९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:49


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (रुद्र) राजा के वैद्य तू (या) जो (ते) तेरी (शिवा) कल्याण करनेवाली (तनूः) देह वा विस्तारयुक्त नीति (शिवा) देखने में प्रिय (भेषजी) ओषधियों के तुल्य रोगनाशक और (रुतस्य) रोगी को (शिवा) सुखदायी (भेषजी) पीड़ा हरनेवाली है (तया) उससे (जीवसे) जीने के लिये (विश्वाहा) सब दिन (नः) हम को (मृड) सुख कर ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - राजा के वैद्य आदि विद्वानों को चाहिये कि धर्म की नीति, ओषधि के दान, हस्तक्रिया की कुशलता और शस्त्रों से छेदन-भेदन करके रोगों से बचा के सब सेना और प्रजाओं को प्रसन्न करें ॥४९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(या) (ते) तव (रुद्र) राजवैद्य (शिवा) कल्याणकारिणी (तनूः) शरीरं विस्तृता नीतिर्वा (शिवा) प्रियदर्शना (विश्वाहा) सर्वाणि दिनानि (भेषजी) औषधानीव रोगनिवारिका (शिवा) सुखप्रदा (रुतस्य) रुग्णस्य। अत्र पृषोदरादित्वाज्जलोपः। (भेषजी) आधिविनाशिनी (तया) (नः) अस्मान् (मृड) सुखय (जीवसे) जीवितुम् ॥४९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे रुद्र ! त्वं या ते शिवा तनूः शिवा भेषजी रुतस्य शिवा भेषज्यस्ति तया जीवसे विश्वाहा नो मृड ॥४९ ॥
भावार्थभाषाः - राजवैद्यादिविद्वद्भिर्धर्मनीत्यौषधिदानेन हस्तक्रियाकौशलेन शस्त्रैश्छित्त्वा भित्त्वा च रोगेभ्यो निवार्य्य सर्वाः सेनाः प्रजाश्च रञ्चनीयाः ॥४९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजाचे वैद्य वगैरे विद्वानांनी धर्मनीतीचे पालन, औषधांचे दान, शस्त्रक्रिया करून प्रजेला व सेनेला रोगापासून वाचवावे व पुष्ट बनवून प्रसन्न ठेवावे.