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नमः॒ शुष्क्या॑य च हरि॒त्या᳖य च॒ नमः॑ पास॒व्या᳖य च र॒ज॒स्या᳖य च॒ नमो॒ लोप्या॑य चोल॒प्या᳖य च॒ नम॒ऽऊर्व्या॑य च॒ सूर्व्या॑य च ॥४५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। शुष्क्या॑य। च॒। ह॒रि॒त्या᳖य। च॒। नमः॑। पा॒ꣳस॒व्या᳖य। च॒। र॒ज॒स्या᳖य। च॒। नमः॑। लोप्या॑य। च॒। उ॒ल॒प्या᳖य। च॒। नमः॑। ऊर्व्या॑य। च॒। सूर्व्या॒येति॑ सु॒ऽऊर्व्या॑य। च॒ ॥४५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:45


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उन मनुष्यों को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्य (शुष्क्याय) नीरस पदार्थों में रहने (च) और (हरित्याय) सरस पदार्थों में प्रसिद्ध को (च) भी (नमः) जलादि देवें (पांसव्याय) धूलि में रहने (च) और (रजस्याय) लोक-लोकान्तरों में रहनेवाले का (च) भी (नमः) मान करें (लोप्याय) छेदन करने में प्रवीण (च) और (उलप्याय) फेंकने में कुशल पुरुष का (च) भी (नमः) मान करें (ऊर्व्याय) मारने में प्रसिद्ध (च) और (सूर्व्याय) सुन्दरता से ताड़ना करनेवाले का (च) भी (नमः) सत्कार करें, उनके सब कार्य सिद्ध होवें ॥४५ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्य सुखाने और हरापन आदि करनेवाले वायुओं को जान के अपने कार्य सिद्ध करें ॥४५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तैः किं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(नमः) जलादिकम् (शुष्क्याय) शुष्केषु नीरसेषु भवाय (च) (हरित्याय) हरितेषु सरसेषु आर्द्रेषु भवाय (च) (नमः) मान्यम् (पांसव्याय) पांसुषु धूलिषु भवाय (च) (रजस्याय) रजःसु लोकेषु परमाणुषु वा भवाय (च) (नमः) मानम् (लोप्याय) लोपेषु छेदनेषु साधवे (च) (उलप्याय) उलपे उत्क्षेपणे साधवे। अत्रोलश्चौरादिकाद् धातोरौणादिको डपन् प्रत्ययः। (च) (नमः) सत्क्रियाम् (ऊर्व्याय) ऊर्वौ हिंसायां साधवे (च) (सूर्व्याय) सुष्ठु ऊर्वौ भवाय (च) ॥४५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये मनुष्याः शुष्क्याय च हरित्याय च नमः पांसव्याय च रजस्याय च नमो लोप्याय चोलप्याय च नम ऊर्व्याय च सूर्व्याय च नमो दद्युः कुर्युस्तेषां कार्याणि सिध्येयुः ॥४५ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्याः शोषणहरितत्वादिकारकान् वायून् विज्ञाय कार्य्यसिद्धिं कुर्युः ॥४५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी शुष्क करणारा वायू व हरित बनविणारा वायू जाणावा आणि आपले कार्य सिद्ध करावे.