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नमो॒ व्रज्या॑य च॒ गोष्ठ्या॑य च॒ नम॒स्तल्प्या॑य च॒ गेह्या॑य च॒ नमो॑ हृद॒य्या᳖य च निवे॒ष्या᳖य च॒ नमः॒ काट्या॑य च गह्वरे॒ष्ठाय॑ च॒ ॥४४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। व्रज्या॑य। च॒। गोष्ठ्या॑य। गोस्थ्या॒येति॒ गोऽस्थ्या॑य। च॒। नमः॑। तल्प्या॑य। च॒। गेह्या॑य। च॒। नमः॑। हृ॒द॒य्या᳖य। च॒। नि॒वे॒ष्या᳖येति॑ निऽवे॒ष्या᳖य। च॒। नमः॑। काट्या॑य। च॒। ग॒ह्व॒रे॒ष्ठाय॑। च॒ ॥४४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:44


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे मनुष्य सुखी होते हैं, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्य (व्रज्याय) क्रियाओं में प्रसिद्ध (च) और (गोष्ठ्याय) गौ आदि के स्थानों के उत्तम प्रबन्धकर्त्ता को (च) भी (नमः) अन्नादि देवें (तल्प्याय) खट्वादि के निर्माण में प्रवीण (च) और (गेह्याय) घर में रहनेवाले को (च) भी (नमः) अन्न देवें (हृदय्याय) हृदय के विचार में कुशल (च) और (निवेष्याय) विषयों में निरन्तर व्याप्त होने में प्रवीण पुरुष का (च) भी (नमः) सत्कार करें (काट्याय) आच्छादित गुप्त पदार्थों को प्रकट करने (च) और (गह्वरेष्ठाय) गहन अति कठिन गिरिकन्दराओं में उत्तम रहनेवाले पुरुष को (च) भी (नमः) अन्नादि देवें, वे सुख को प्राप्त होवें ॥४४ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य मेघ से उत्पन्न वर्षा और वर्षा से उत्पन्न हुए तृण आदि की रक्षा से गौ आदि पशुओं को बढ़ावें, वे पुष्कल भोग को प्राप्त होवें ॥४४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कीदृशा जनाः सुखिनो भवन्तीत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नादिदानम् (व्रज्याय) व्रजिषु क्रियासु भवाय (च) (गोष्ठ्याय) गोष्ठेषु गवां स्थानेषु साधवे (च) (नमः) अन्नम् (तल्प्याय) तल्पे शयने साधवे (च) (गेह्याय) गेहे नितरां भवाय (च) (नमः) सत्कृतिम् (हृदय्याय) हृदये साधवे (च) (निवेष्याय) नितरां व्याप्तौ साधवे (च) (नमः) अन्नादिदानम् (काट्याय) कटेष्वावरणेषु भवाय (च) (गह्वरेष्ठाय) गह्वरेषु गहनेषु तिष्ठति तत्र सुसाधवे (च) ॥४४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये मनुष्या व्रज्याय च गोष्ठ्याय च नमस्तल्प्याय च गेह्याय च नमो हृदय्याय च निवेष्याय च नमः काट्याय च गह्वरेष्ठाय च नमो दद्युस्ते सुखं भजेरन् ॥४४ ॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या मेघवृष्टिजन्यतृणादिरक्षणेन गवादीन् वर्द्धयेयुस्ते पुष्कलं भोगं लभेरन् ॥४४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे मेघांपासून वृष्टी व त्यापासून उत्पन्न झालेले गवत वगैरेंचे रक्षण करून पशूंचे पोषण करतात त्यांना पुष्कळ भोगपदार्थ प्राप्त होतात.