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नमः॑ सिक॒त्या᳖य च प्रवा॒ह्या᳖य च॒ नमः॑ किꣳशि॒लाय॑ च क्षय॒णाय॑ च॒ नमः॑ कप॒र्दिने॑ च पुल॒स्तये॑ च॒ नम॑ऽइरि॒ण्या᳖य च प्र॒पथ्या᳖य च ॥४३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। सि॒क॒त्या᳖य। च॒। प्र॒वा॒ह्या᳖येति॑ प्रऽवा॒ह्या᳖य। च॒। नमः॑। कि॒ꣳशि॒लाय॑। च॒। क्ष॒य॒णाय॑। च॒। नमः॑। क॒प॒र्दिने॑। च॒। पु॒ल॒स्तये॑। च॒। नमः॑। इ॒रि॒ण्या᳖य। च॒। प्र॒प॒थ्या᳖येति॑ प्रऽप॒थ्या᳖य। च॒ ॥४३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:43


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्यों को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्य (सिकत्याय) बालू से पदार्थ निकालने में चतुर (च) और (प्रवाह्याय) बैल आदि के चलानेवालों में प्रवीण को (च) भी (नमः) अन्न (किंशिलाय) शिलावृत्ति करने (च) और (क्षयणाय) निवासस्थान में रहनेवाले को (च) भी (नमः) अन्न (कपर्दिने) जटाधारी (च) और (पुलस्तये) बड़े-बड़े शरीरों को फेंकनेवाले को (च) भी (नमः) अन्न देवें (इरिण्याय) ऊसर भूमि से अति उपकार लेनेवाले (च) और (प्रपथ्याय) उत्तम धर्म के मार्गों में प्रवीण पुरुष का (च) भी (नमः) सत्कार करें, वे सब के प्रिय होवें ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि भूगर्भविद्यानुसार बालू, मट्टी आदि से सुवर्णादि धातुओं को निकाल बहुत ऐश्वर्य को बढ़ा के अनाथों का पालन करें ॥४३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्यैः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नम् (सिकत्याय) सिकतासु साधवे (च) (प्रवाह्याय) ये प्रवोढुं योग्यास्तेषु साधवे (च) (नमः) (किंशिलाय) किं कुत्सितः शिलो वृत्तिर्यस्य तस्मै (च) (क्षयणाय) निवासे वर्त्तमानाय (च) (नमः) अन्नम् (कपर्दिने) जटायुक्ताय जनाय (च) (पुलस्तये) महाकायक्षेप्त्रे। अत्र पुल महत्त्वे धातोर्बाहुलकादौणादिकः कस्तिः प्रत्ययः। (च) (नमः) सत्करणम् (इरिण्याय) इरिण ऊषरभूमौ साधवे (च) (प्रपथ्याय) प्रकृष्टेषु धर्मपथिषु साधवे (च) ॥४३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये मनुष्याः सिकत्याय च प्रवाह्याय च नमः किंशिलाय च क्षयणाय च नमः कपर्दिने च पुलस्तये च नम इरिण्याय च प्रपथ्याय च नमो दद्युः कुर्युस्ते सर्वप्रिया जायेरन् ॥४३ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्भूगर्भविद्यया सिकतादिषु भवान् सुवर्णादीन् धातून् निःसार्य महदैश्वर्यमुन्नीयानाथाः पालनीयाः ॥४३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी भूगर्भविद्येनुसार वाळू, माती इत्यादीपासून सुवर्ण वगैरे धातू काढून खूप ऐश्वर्य वाढवावे आणि अनाथांचे पालन करावे.