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नमो॒ वात्या॑य च॒ रेष्म्या॑य च॒ नमो॑ वास्त॒व्या᳖य च वास्तु॒पाय॑ च॒ नमः॒ सोमा॑य च रु॒द्राय॑ च॒ नम॑स्ता॒म्राय॑ चारु॒णाय॑ च ॥३९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। वात्या॑य। च॒। रेष्म्या॑य। च॒। नमः॑। वा॒स्त॒व्या᳖य। च॒। वा॒स्तु॒पायेति॑ वास्तु॒ऽपाय॑। च॒। नमः॑। सोमा॑य। च॒। रु॒द्राय॑। च॒। नमः॑। ता॒म्राय॑। च॒। अ॒रु॒णाय॑। च॒ ॥३९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:39


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मनुष्य जगत् के अन्य पदार्थों से कैसे उपकार लेवें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्या (वात्याय) वायुविद्या में कुशल (च) और (रेष्म्याय) मारनेवालों में प्रसिद्ध को (च) भी (नमः) अन्नादि देवें (च) तथा (वास्तव्याय) निवास के स्थानों में हुए (च) और (वास्तुपाय) निवासस्थान के रक्षक का (नमः) सत्कार करें (च) तथा (सोमाय) धनाढ्य (च) और (रुद्राय) दुष्टों को रोदन कराने हारे को (नमः) अन्नादि देवें (च) तथा (ताम्राय) बुरे कामों से ग्लानि करने (च) और (अरुणाय) अच्छे पदार्थों को प्राप्त कराने हारे का (नमः) सत्कार करें, वे लक्ष्मी से सम्पन्न होवें ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - जब मनुष्य वायु आदि के गुणों को जान के व्यवहारों में लगावें, तब अनेक सुखों को प्राप्त हों ॥३९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्यैरन्येभ्यो जगत्स्थपदार्थेभ्यः कथमुपकारो ग्राह्य इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नादिकम् (वात्याय) वायुविद्यायां भवाय (च) (रेष्म्याय) रेष्मेषु हिंसकेषु भवाय (च) (नमः) सत्करणम् (वास्तव्याय) वास्तुनि निवासस्थाने भवाय (च) (वास्तुपाय) वास्तूनि निवासस्थानानि पाति तस्मै (च) (नमः) अन्नादिकम् (सोमाय) ऐश्वर्य्योपपन्नाय (च) (रुद्राय) दुष्टानां रोदकाय (च) (नमः) सत्करणम् (ताम्राय) यस्ताम्यति ग्लायति तस्मै (च) (अरुणाय) प्रापकाय (च) ॥३९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये मनुष्या वात्याय च रेष्म्याय च नमो वास्तव्याय च वास्तुपाय च नमः सोमाय च रुद्राय च नमस्ताम्राय चारुणाय च नमो विदध्युस्ते श्रिया सम्पन्नाः स्युः ॥३९ ॥
भावार्थभाषाः - यदा मनुष्या वाय्वादिगुणान् विदित्वा व्यवहारेषु संप्रयुञ्जीरंस्तदानेकानि सुखानि लभेरन् ॥३९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जेव्हा माणूस वायू इत्यादींचे गुण जाणून व्यवहारात त्यांचा उपयोग करतो तेव्हा अनेक प्रकारचे सुख त्याला प्राप्त होते.