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नमः॒ स्रुत्या॑य च॒ पथ्या॑य च॒ नमः॒ काट्या॑य च॒ नीप्या॑य च॒ नमः॒ कुल्या॑य च सर॒स्या᳖य च॒ नमो॑ नादे॒या॑य च वैश॒न्ताय॑ च ॥३७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। स्रुत्या॑य। च॒। पथ्या॑य। च॒। नमः॑। काट्या॑य। च॒। नीप्या॑य। च॒। नमः॑। कुल्या॑य। च॒। स॒र॒स्या᳖य। च॒। नमः॑। ना॒दे॒याय॑। च॒। वै॒श॒न्ताय॑। च॒ ॥३७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:37


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य लोग जल से कैसे उपकार लेवें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि (स्रुत्याय) स्रोता नाले आदि में रहने (च) और (पथ्याय) मार्ग में चलने (च) तथा मार्गादि को शोधनेवाले को (नमः) अन्न दे (काट्याय) कूप आदि में प्रसिद्ध (च) और (नीप्याय) बड़े जलाशय में होने (च) तथा उसके सहायी का (नमः) सत्कार (कुल्याय) नहरों का प्रबन्ध करने (च) और (सरस्याय) तालाब के काम में प्रसिद्ध होनेवाले का (नमः) सत्कार (च) और (नादेयाय) नदियों के तट पर रहने (च) और (वैशन्ताय) छोटे-छोटे जलाशयों के जीवों को (च) और वापी आदि के प्राणियों को (नमः) अन्नादि देके दया प्रकाशित करें ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि नदियों के मार्गों, बंबों, कूपों, जलप्राय देशों, बड़े और छोटे तालाबों के जल को चला, जहाँ-कहीं बाँध और खेत आदि में छोड़ के, पुष्कल अन्न, फल, वृक्ष, लता, गुल्म आदि को अच्छे प्रकार बढ़ावें ॥३७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैरुदकेन कथमुपकर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नदानम् (स्रुत्याय) स्रुतौ प्रस्रवणे भवाय (च) (पथ्याय) पथि भवाय गन्तुकाय (च) मार्गादिशोधकाय (नमः) सत्करणम् (काट्याय) काटेषु कूपेषु भवाय। काट इति कूपनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.२३) (च) (नीप्याय) नितरामापो यस्मिन् स नीपस्तत्र भवाय (च) तत्सहायिने (नमः) सत्करणम् (कुल्याय) कुल्यासु नदीषु भवाय। कुल्या इति नदीनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१३) (च) (सरस्याय) सरसि तडागे भवाय (च) (नमः) अन्नादिदानम् (नादेयाय) नदीषु भवाय (च) (वैशन्ताय) वेशन्तेषु क्षुद्रेषु जलाशयेषु भवाय (च) ॥३७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - मनुष्यैः स्रुत्याय च पथ्याय च नमः काट्याय च नीप्याय च नमः कुल्याय च सरस्याय नमश्च नादेयाय च वैशन्ताय च नमो दत्त्वा दया प्रकाशनीया ॥३७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः स्रोतसां मार्गाणां कूपानां जलप्रायदेशानां महदल्पसरसां च जलं चालयित्वा यत्र कुत्र बद्ध्वा क्षेत्रादिषु पुष्कलान्यन्नफलवृक्षलतागुल्मादीनि संवर्धनीयानि ॥३७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी नद्या, कालवे, विहिरी व तलाव यांचे जल व जलीय प्रदेशातील जल शेती व बांध इत्यादीमध्ये सोडावे व पुष्कळ अन्न, फळे, वृक्ष, लता, खोड इत्यादी चांगल्या प्रकारे वाढवावीत.