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नमो॒ वन्या॑य च॒ कक्ष्या॑य च॒ नमः॑ श्र॒वाय॑ च प्रतिश्र॒वाय॑ च॒ नम॑ऽआ॒शुषे॑णाय चा॒शुर॑थाय च॒ नमः॒ शूरा॑य चावभे॒दिने॑ च ॥३४ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। वन्या॑य। च॒। कक्ष्या॑य। च॒। नमः॑। श्र॒वाय॑। च॒। प्र॒ति॒श्र॒वायेति॑ प्रतिऽश्र॒वाय॑। च॒। नमः॑। आ॒शुषे॑णाय। आ॒शुसे॑ना॒येत्या॒शुऽसेना॑य। च॒। आ॒शुर॑था॒येत्या॒शुऽर॑थाय। च॒। नमः॑। शूरा॑य। च॒। अ॒व॒भे॒दिन॒ इत्य॑वऽभे॒दिने॑। च॒ ॥३४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:34


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजपुरुषों को कैसा होना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो लोग (वन्याय) जङ्गल में रहने (च) और (कक्ष्याय) वन के समीप कक्षाओं में (च) तथा गुफा आदि में रहनेवालों को (नमः) अन्न देवें (श्रवाय) सुनने वा सुनाने के हेतु (च) और (प्रतिश्रवाय) प्रतिज्ञा करने (च) तथा प्रतिज्ञा को पूरी करने हारे का (नमः) सत्कार करें (आशुषेणाय) शीघ्रगामिनी सेनावाले (च) और (आशुरथाय) शीघ्र चलने हारे रथों के स्वामी (च) तथा सारथि आदि को (नमः) अन्न देवें (शूराय) शत्रुओं को मारने (च) और (अवभेदिने) शत्रुओं को छिन्न-भिन्न करनेवाले (च) तथा दूतादि का (नमः) सत्कार करें, उन का सर्वत्र विजय होवे ॥३४ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषों को चाहिये कि वन तथा कक्षाओं में रहनेवाले अध्येता और अध्यापकों, बलिष्ठ सेनाओं, शीघ्र चलने हारे यानों में बैठनेवाले वीरों और दूतों को अन्न, धनादि से सत्कारपूर्वक उत्साह देके सदा विजय को प्राप्त हों ॥३४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजपुरुषैः कथं भवितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नम् (वन्याय) वने जङ्गले भवाय (च) (कक्ष्याय) कक्षासु भवाय (च) (नमः) सत्करणम् (श्रवाय) श्रोत्रे श्रवणहेतवे वा (च) (प्रतिश्रवाय) यः प्रतिशृणोति प्रतिजानीते तस्मै (च) (नमः) अन्नदानम् (आशुषेणाय) आशु शीघ्रगामिनी सेना यस्य तस्मै (च) (आशुरथाय) आशु शीघ्रगामिनो रथा यानानि यस्य तस्मै (च) (नमः) सत्कारम् (शूराय) शत्रूणां हिंसकाय (च) (अवभेदिने) शत्रूनवभेत्तुं विदारयितुं शीलाय (च) ॥३४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! ये वन्याय च कक्ष्याय च नमः श्रवाय च प्रतिश्रवाय च नम आशुषेणाय चाशुरथाय च नमः शूराय चावभेदिने च नमः प्रदद्युः कुर्युस्ते सर्वत्र विजयिनो भवन्तु ॥३४ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषैः वनकक्षास्थाध्येत्रध्यापकबलिष्ठसेनातूर्णगामियानस्थवीरदूतानन्नधनादिना सत्कारेण प्रोत्साह्य सदा विजयिभिर्भवितव्यम् ॥३४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांनी वनातील लोक, वर्गातील विद्यार्थी, अध्यापक, बलिष्ठ सेना, वेगवान यानात बसणारे वीर व दूत यांचा अन्न व धन देऊन सत्कार करावा व सदैव त्यांचा उत्साह वाढवावा आणि विजय मिळवावा.