वांछित मन्त्र चुनें

नमो॑ ह्र॒स्वाय॑ च वाम॒नाय॑ च॒ नमो॑ बृह॒ते च॒ वर्षी॑यसे च॒ नमो॑ वृ॒द्धाय॑ च स॒वृधे॑ च॒ नमोऽग्र्या॑य च प्रथ॒माय॑ च ॥३० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। ह्र॒स्वाय॑। च॒। वा॒म॒नाय॑। च॒। नमः॑। बृ॒ह॒ते। च॒। वर्षी॑यसे। च॒। नमः॑। वृ॒द्धाय॑। च॒। स॒वृध॒ इति॑ स॒ऽवृधे॑। च॒। नमः॑। अग्र्या॑य। च॒। प्र॒थ॒माय॑। च॒ ॥३० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:30


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो गृहस्थ लोग (ह्रस्वाय) बालक (च) और (वामनाय) प्रशंसित ज्ञानी (च) तथा मध्यम विद्वान् को (नमः) अन्न देते हैं (बृहते) बड़े (च) और (वर्षीयसे) विद्या में अतिवृद्ध (च) तथा विद्यार्थी का (नमः) सत्कार (वृद्धाय) अवस्था में अधिक (च) और (सवृधे) अपने समानों के साथ बढ़नेवाले (च) तथा सब के मित्र का (नमः) सत्कार (च) और (अग्र्याय) सत्कर्म करने में सब से पहिले उद्यत होनेवाले (च) तथा (प्रथमाय) प्रसिद्ध पुरुष का (नमः) सत्कार करते हैं ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थ मनुष्यों को उचित है कि अन्नादि पदार्थों से बालक आदि का सत्कार करके अच्छे व्यवहार की उन्नति करें ॥३० ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तदेवाह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नम् (ह्रस्वाय) बालकाय (च) (वामनाय) वामं प्रशस्तं विज्ञानं विद्यते यस्य तस्मै। वाम इति प्रशस्यनामसु पठितम् ॥ (निघं०३.८) अत्र पामादित्वान्नः ॥ (अष्टा०५.२.१००) (च) (नमः) सत्करणम् (बृहते) महते (च) (वर्षीयसे) अतिशयेन विद्यावृद्धाय (च) (नमः) सत्करणम् (वृद्धाय) वयोऽधिकाय (च) (सवृधे) यः समानैः सह वर्धते तस्मै (च) सर्वमित्राय (नमः) सत्करणम् (अग्र्याय) अग्रे भवाय सत्कर्मसु पुरःसराय (च) (प्रथमाय) प्रख्याताय (च) ॥३० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये गृहस्था मनुष्या ह्रस्वाय च वामनाय च नमो बृहते च वर्षीयसे च नमो वृद्धाय च सवृधे च नमोऽग्र्याय च प्रथमाय नमश्च ददति कुर्वन्ति च ते सुखिनो भवन्ति ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थैर्मनुष्यैरन्नादिना बालकादीन् सत्कृत्य सद्व्यवहार उन्नेयः ॥३० ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - गृहस्थांनी बालकांना अन्न द्यावे व त्यांच्याशी चांगला व्यवहार करावा. (ज्ञानी विद्वानांचा सत्कार करावा. )